Priyatam Kumar Mishra
Saturday, September 28, 2019
Thursday, September 19, 2019
माँ दुर्गा की महिमा और उनका रूप
देवी दुर्गा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक सबसे शक्तिशाली देवी है। हिंदू पौराणिक कथाओं में परोपकार और कृपाभाव को पूरा करने के लिए उन्हें विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। वह उमा है "चमक " ,गौरी "सफेद या प्रतिभाशाली "; पार्वती, " पर्वतारोही "; या जगतमाता , " माँ -की दुनिया" उनका दानवो के लिए भयानक रूप है दुर्गा , काली, चंडी ,
महिषासुर मर्दिनी बाघ पर सवार एक निडर रूप में जिसे अभय मुद्रा के नाम से जाना जाता है ,| भय से मुक्ति का आश्वासन देते हुए। जगतमाता अपने सभी भक्तो से कहती है " मुझ पर सभी कार्यों को समर्प्रित कर दो मैं तुम्हे सभी मुसीबतों से बचा लुंगी। दुर्गा माँ आठ या दस हाथ होने के रूप में वर्णित की गयी है । यह 8 हाथ चतुर्भागों या हिंदू धर्म में दस दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं । वह सभी दिशाओं से अपने भक्तों की रक्षा करती है।
माँ के हाथों में- हथियार और अन्य
• दुर्गा माँ के हाथ में शंख "प्रणवा " या " ॐ " का प्रतिक है,जिसकी ध्वनि भगवान की उपस्थिति का प्रतिक है ।
• धनुष और तीर ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं । धनुष और तीर दोनों एक हाथ
में पकड़ कर " माँ दुर्गा " यह दर्शा रही है ऊर्जा के दोनों रूपों पर
नियंत्रण कैसे किया जाता है । -(क्षमता और गतिज)
• वज्र दृढ़ता का प्रतीक है। दुर्गा के भक्त वज्र की तरह शांत होने चाहिए
किसी की प्रतिबद्धता में। व्रज की तरह वह सभी को तोड़ सकता है जिससे भी वह
टकराता है।
• एक भक्त को अपने विश्वास को खोये बिना हर चुनौती का सामना करना चाहिए।
• दुर्गा माँ के हाथ में कमल पूरी तरह से खिला हुआ नहीं है ,यह सफलता नहीं
बल्कि अन्तिम की निश्चितता का प्रतीक है। संस्कृत में कलम को "पंकजा" कहा
`जाता है जिसका मतलब है कीचड़ में जन्मा हुआ। इस प्रकार, कमल वासना और लालच
की सांसारिक कीचड़ के बीच श्रद्धालुओं का आध्यात्मिक गुणवत्ता के सतत
विकास के लिए खड़ा है ।
• " सुदर्शन -चक्र " : एक सुंदर डिस्कस ,जो देवी की तर्जनी के चारों ओर
घूमती है ,जब उसे नहीं छू ते है ,पूरी दुनिया दुर्गा की इच्छा के अधीन का
प्रतीक है और उनके आदेश का भी। वह बुराई को नष्ट करने और धर्म के विकास के
लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करने के लिए इस अमोघ हथियार का उपयोग करती
है।
• तलवार : तलवार जो माँ दुर्गा एक हाथ में पकड़ती है वह ज्ञान का
प्रतिनिधित्व करता है ,जो तेज़ होता है। सभी संदेहों से मुक्त है जो ज्ञान ,
तलवार की चमक का प्रतीक है।
• त्रिशूल : दुर्गा त्रिशूल या " त्रिशूल " तीन गुणों का प्रतीक है- सातवा
( निष्क्रियता ), राजस ( गतिविधि) और तामस (गैर गतिविधि)- और वह तीन
प्रकार के दुःख मिटाती है शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक।
Priyatam Kumar Mishra
Wednesday, September 23, 2015
बड़ा बनने के लिए बड़ा सोचो
अत्यंत गरीब परिवार का एक बेरोजगार युवक नौकरी की तलाश में किसी दूसरे
शहर जाने के लिए रेलगाड़ी से सफ़र कर रहा था | घर में कभी-कभार ही सब्जी
बनती थी, इसलिए उसने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटीयां ही रखी थी |आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने
लगी, और वह टिफिन में से रोटीयां निकाल कर खाने लगा | उसके खाने का तरीका
कुछ अजीब था , वह रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अन्दर कुछ ऐसे
डालता मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ
रोटीयां थीं!! उसकी इस हरकत को आस पास के और दूसरे यात्री देख कर हैरान हो
रहे थे | वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और झूठमूठ का टिफिन में
डालता और खाता | सभी सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्यों कर रहा था |
आखिरकार एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने उससे पूछ ही लिया की भैया तुम
ऐसा क्यों कर रहे हो, तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं फिर रोटी के
टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो मानो उसमे सब्जी हो |
तब उस युवक ने जवाब दिया, “भैया , इस
खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मै अपने मन में यह सोच कर खा रहा हू की
इसमें बहुत सारा आचार है, मै आचार के साथ रोटी खा रहा हू |”
फिर व्यक्ति ने पूछा , “खाली ढक्कन में आचार सोच कर सूखी रोटी को खा रहे हो तो क्या तुम्हे आचार का स्वाद आ रहा है ?”
“हाँ, बिलकुल आ रहा है , मै रोटी के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है |”, युवक ने जवाब दिया|
उसके इस बात को आसपास के यात्रियों ने भी
सुना, और उन्ही में से एक व्यक्ति बोला , “जब सोचना ही था तो तुम आचार की
जगह पर मटर-पनीर सोचते, शाही गोभी सोचते….तुम्हे इनका स्वाद मिल जाता |
तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने आचार सोचा तो आचार का स्वाद आया तो और
स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद आता | सोचना ही था तो
भला छोटा क्यों सोचे तुम्हे तो बड़ा सोचना चाहिए था |”
मित्रो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती
है की जैसा सोचोगे वैसा पाओगे | छोटी सोच होगी तो छोटा मिलेगा, बड़ी सोच
होगी तो बड़ा मिलेगा | इसलिए जीवन में हमेशा बड़ा सोचो | बड़े सपने देखो ,
तो हमेश बड़ा ही पाओगे | छोटी सोच में भी उतनी ही उर्जा और समय खपत होगी
जितनी बड़ी सोच में, इसलिए जब सोचना ही है तो हमेशा बड़ा ही सोचो|
Priyatam Kumar Mishra
Thursday, October 30, 2014
शिव के ये 11 नाम रोज लेने से दूर हो सकते हैं जीवन के सारे दुख
सारी प्रकृति को शिव स्वरूप माना गया है। इन रूपों में ही एक हैं- रुद्र। धर्म मान्यताओं व लोक परंपराओं में रुद्र के अवतार हनुमानजी या कालभैरव भी संकटमोचन के लिए पूजे जाते हैं। फिर भी रुद्र नाम का अर्थ क्या होता है व इसकी शक्तियों का प्रभाव कहां व कैसे होता है, यह कई शिव भक्त भी नहीं जानते रुद्र का शाब्दिक अर्थ होता है - रुत् यानी दु:खों का अंत करने वाला।
यही वजह है कि शिव को दु:खों को नाश करने वाले देवता के रुप में भी पूजा जाता है।व्यावहारिक जीवन में कोई दु:खों को तभी भोगता है, जब तन, मन या कर्म किसी न किसी रूप में अपवित्र होते हैं। शिव के रुद्र रूप की आराधना का महत्व यही है कि इससे व्यक्ति का चित्त पवित्र रहता है और वह ऐसे कर्म और विचारों से दूर होता है, जो मन में बुरे भाव पैदा करे। शास्त्रों के मुताबिक शिव ग्यारह अलग-अलग रुद्र रूपों में दु:खों का नाश करते हैं। यह ग्यारह रूप एकादश रुद्र के नाम से जाने जाते हैं। जानिए ग्यारह रूद्र रूप व शक्तियों से जुड़ी बातें -
शम्भू - शास्त्रों के मुताबिक यह रुद्र रूप साक्षात ब्रह्म है। इस रूप में ही वह जगत की रचना, पालन और संहार करते हैं।
पिनाकी - ज्ञान शक्ति रुपी चारों वेदों के के स्वरुप माने जाने वाले पिनाकी रुद्र दु:खों का अंत करते हैं।
स्थाणु - समाधि, तप और आत्मलीन होने से रुद्र का चौथा अवतार स्थाणु कहलाता है। इस रुप में पार्वती रूप शक्ति बाएं भाग में विराजित होती है।
भर्ग - भगवान रुद्र का यह रुप बहुत तेजोमयी है। इस रुप में रुद्र हर भय और पीड़ा का नाश करने वाले होते हैं।
भव - रुद्र का भव रुप ज्ञान बल, योग बल और भगवत प्रेम के रुप में सुख देने वाला माना जाता है।
शिव- यह रुद्र रूप अंतहीन सुख देने वाला यानी कल्याण करने वाला माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव आराधना महत्वपूर्ण मानी जाती है।
हर- इस रुप में नाग धारण करने वाले रुद्र शारीरिक, मानसिक और सांसारिक दु:खों को हर लेते हैं। नाग रूपी काल पर इन का नियंत्रण होता है।
शर्व- काल को भी काबू में रखने वाला यह रुद्र रूप शर्व कहलाता है।
गिरीश - कैलाशवासी होने से रुद्र का तीसरा रुप गिरीश कहलाता है। इस रुप में रुद्र सुख और आनंद देने वाले माने गए हैं।
सदाशिव - रुद्र का यह स्वरुप निराकार ब्रह्म का साकार रूप माना जाता है, जो सभी वैभव, सुख और आनंद देने वाला माना जाता है।
Tuesday, April 8, 2014
अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली
अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेर ही गुण गायें भारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।
तेर भक्त जानो पर मैया भीड़ पड़ी है भारी,
दानव दल पर टूट पड़ो माँ कर के सिंह सवारी ।
सो सो सिंघो से है बलशाली,
है दस भुजाओं वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
माँ बेटे की है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता,
पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता ।
सबपे करुना बरसाने वाली,
अमृत बरसाने वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
नहीं मांगते धन और दौलत ना चांदी ना सोना,
हम तो मांगे माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना ।
सब की बिगड़ी बनाने वाली,
लाज बचाने वाली,
सतिओं के सत को सवारती ।
मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती
मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती,
होंठो की हैं थालिया, बोल फूल पाती।
रोम रोम जीभा तेरा नाम पुकारती,
आरती ओ मैया तेरी आरती,
ज्योतां वालिये माँ तेरी आरती॥
हे महालक्ष्मी हे गौरी, तू अपने आप है चोहरी,
तेरी कीमत तू ही जाने, तू बुरा भला पहचाने।
यह कहते दिन और राती, तेरी लिखीं ना जाए बातें,
कोई माने जा ना माने हम भक्त तेरे दीवाने,
तेरे पाँव सारी दुनिया पखारती॥
हे गुणवंती सतवंती, हे पत्त्वंती रसवंती,
मेरी सुनना यह विनंती, मेरी चोला रंग बसंती।
हे दुःख भंजन सुख दाती, हमें सुख देना दिन राती,
जो तेरी महिमा गाये, मुहं मांगी मुरादे पाए,
हर आँख तेरी और निहारती॥
हे महाकाल महाशक्ति, हमें देदे ऐसी भक्ति,
हे जगजननी महामाया, है तू ही धुप और छाया।
तू अमर अजर अविनाशी, तू अनमिट पूरनमाशी,
सब करके दूर अँधेरे हमें बक्शो नए सवेरे।
तू तो भक्तो की बिगड़ी संवारती॥
निर्धन के घर भी आ जाना
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
ना छत्र बना सका सोने का, ना चुनरी घर मेरे टारों जड़ी |
ना पेडे बर्फी मेवा है माँ, बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़े ||
इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ, इस विनती को ना ठुकरा जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
जिस घर के दिए मे तेल नहीं, वहां जोत जगाओं कैसे |
मेरा खुद ही बिशोना डरती माँ, तेरी चोंकी लगाऊं मै कैसे ||
जहाँ मै बैठा वही बैठ के माँ, बच्चों का दिल बहला जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
तू भाग्य बनाने वाली है, माँ मै तकदीर का मारा हूँ |
हे दाती संभाल भिकारी को, आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ||
मै दोषी तू निर्दोष है माँ, मेरे दोषों को तूं भुला जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||
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