Wednesday, September 23, 2015

बड़ा बनने के लिए बड़ा सोचो

अत्यंत गरीब परिवार का एक  बेरोजगार युवक  नौकरी की तलाश में  किसी दूसरे शहर जाने के लिए  रेलगाड़ी से  सफ़र कर रहा था | घर में कभी-कभार ही सब्जी बनती थी, इसलिए उसने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटीयां ही रखी थी |आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने लगी, और वह टिफिन में से रोटीयां निकाल कर खाने लगा | उसके खाने का तरीका कुछ अजीब था , वह रोटी का  एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अन्दर कुछ ऐसे डालता मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ रोटीयां थीं!! उसकी इस हरकत को आस पास के और दूसरे यात्री देख कर हैरान हो रहे थे | वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और झूठमूठ का टिफिन में डालता और खाता | सभी सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्यों कर रहा था | आखिरकार  एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने उससे पूछ ही लिया की भैया तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं फिर रोटी के टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो मानो उसमे सब्जी हो |
तब उस युवक  ने जवाब दिया, “भैया , इस खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मै अपने मन में यह सोच कर खा रहा हू की इसमें बहुत सारा आचार है,  मै आचार के साथ रोटी खा रहा हू  |”
 फिर व्यक्ति ने पूछा , “खाली ढक्कन में आचार सोच कर सूखी रोटी को खा रहे हो तो क्या तुम्हे आचार का स्वाद आ रहा है ?”
“हाँ, बिलकुल आ रहा है , मै रोटी  के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है |”, युवक ने जवाब दिया|
उसके इस बात को आसपास के यात्रियों ने भी सुना, और उन्ही में से एक व्यक्ति बोला , “जब सोचना ही था तो तुम आचार की जगह पर मटर-पनीर सोचते, शाही गोभी सोचते….तुम्हे इनका स्वाद मिल जाता | तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने आचार सोचा तो आचार का स्वाद आया तो और स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद आता | सोचना ही था तो भला  छोटा क्यों सोचे तुम्हे तो बड़ा सोचना चाहिए था |”
मित्रो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जैसा सोचोगे वैसा पाओगे | छोटी सोच होगी तो छोटा मिलेगा, बड़ी सोच होगी तो बड़ा मिलेगा | इसलिए जीवन में हमेशा बड़ा सोचो | बड़े सपने देखो , तो हमेश बड़ा ही पाओगे | छोटी सोच में भी उतनी ही उर्जा और समय खपत होगी जितनी बड़ी सोच में, इसलिए जब सोचना ही है तो हमेशा बड़ा ही सोचो|


Priyatam Kumar Mishra

Thursday, October 30, 2014

शिव के ये 11 नाम रोज लेने से दूर हो सकते हैं जीवन के सारे दुख

सारी प्रकृति को शिव स्वरूप माना गया है। इन रूपों में ही एक हैं- रुद्र। धर्म मान्यताओं लोक परंपराओं में रुद्र के अवतार हनुमानजी या कालभैरव भी संकटमोचन के लिए पूजे जाते हैं। फिर भी रुद्र नाम का अर्थ क्या होता है इसकी शक्तियों का प्रभाव कहां कैसे होता है, यह कई शिव भक्त भी नहीं जानते रुद्र का शाब्दिक अर्थ होता है - रुत् यानी दु:खों का अंत करने वाला।
यही वजह है कि शिव को दु:खों को नाश करने वाले देवता के रुप में भी पूजा जाता है।
व्यावहारिक जीवन में कोई दु:खों को तभी भोगता है, जब तन, मन या कर्म किसी किसी रूप में अपवित्र होते हैं। शिव के रुद्र रूप की आराधना का महत्व यही है कि इससे व्यक्ति का चित्त पवित्र रहता है और वह ऐसे कर्म और विचारों से दूर होता है, जो मन में बुरे भाव पैदा करे। शास्त्रों के मुताबिक शिव ग्यारह अलग-अलग रुद्र रूपों में दु:खों का नाश करते हैं। यह ग्यारह रूप एकादश रुद्र के नाम से जाने जाते हैं। जानिए ग्यारह रूद्र रूप शक्तियों से जुड़ी बातें
शम्भू - शास्त्रों के मुताबिक यह रुद्र रूप साक्षात ब्रह्म है। इस रूप में ही वह जगत की रचना, पालन और संहार करते हैं।


पिनाकी - ज्ञान शक्ति रुपी चारों वेदों के के स्वरुप माने जाने वाले पिनाकी रुद्र दु:खों का अंत करते हैं। 
स्थाणुसमाधि, तप और आत्मलीन होने से रुद्र का चौथा अवतार स्थाणु कहलाता है। इस रुप में पार्वती रूप शक्ति बाएं भाग में विराजित होती है। 
भर्गभगवान रुद्र का यह रुप बहुत तेजोमयी है। इस रुप में रुद्र हर भय और पीड़ा का नाश करने वाले होते हैं। 
भवरुद्र का भव रुप ज्ञान बल, योग बल और भगवत प्रेम के रुप में सुख देने वाला माना जाता है। 
शिवयह रुद्र रूप अंतहीन सुख देने वाला यानी कल्याण करने वाला माना जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव आराधना महत्वपूर्ण मानी जाती है। 
हरइस रुप में नाग धारण करने वाले रुद्र शारीरिक, मानसिक और सांसारिक दु:खों को हर लेते हैं। नाग रूपी काल पर इन का नियंत्रण होता है।
शर्वकाल को भी काबू में रखने वाला यह रुद्र रूप शर्व कहलाता है। 




गिरीश - कैलाशवासी होने से रुद्र का तीसरा रुप गिरीश कहलाता है। इस रुप में रुद्र सुख और आनंद देने वाले माने गए हैं। 
सदाशिव - रुद्र का यह स्वरुप निराकार ब्रह्म का साकार रूप माना जाता है, जो सभी वैभव, सुख और आनंद देने वाला माना जाता है। 

Tuesday, April 8, 2014

अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली


अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेर ही गुण गायें भारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।

तेर भक्त जानो पर मैया भीड़ पड़ी है भारी,
दानव दल पर टूट पड़ो माँ कर के सिंह सवारी ।
सो सो सिंघो से है बलशाली,
है दस भुजाओं वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।

माँ बेटे की है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता,
पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता ।
सबपे करुना बरसाने वाली,
अमृत बरसाने वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।

नहीं मांगते धन और दौलत ना चांदी ना सोना,
हम तो मांगे माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना ।
सब की बिगड़ी बनाने वाली,
लाज बचाने वाली,
सतिओं के सत को सवारती ।

मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती


मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती,
होंठो की हैं थालिया, बोल फूल पाती।
रोम रोम जीभा तेरा नाम पुकारती,
आरती ओ मैया तेरी आरती,
ज्योतां वालिये माँ तेरी आरती॥

हे महालक्ष्मी हे गौरी, तू अपने आप है चोहरी,
तेरी कीमत तू ही जाने, तू बुरा भला पहचाने।
यह कहते दिन और राती, तेरी लिखीं ना जाए बातें,
कोई माने जा ना माने हम भक्त तेरे दीवाने,
तेरे पाँव सारी दुनिया पखारती॥

हे गुणवंती सतवंती, हे पत्त्वंती रसवंती,
मेरी सुनना यह विनंती, मेरी चोला रंग बसंती।
हे दुःख भंजन सुख दाती, हमें सुख देना दिन राती,
जो तेरी महिमा गाये, मुहं मांगी मुरादे पाए,
हर आँख तेरी और निहारती॥

हे महाकाल महाशक्ति, हमें देदे ऐसी भक्ति,
हे जगजननी महामाया, है तू ही धुप और छाया।
तू अमर अजर अविनाशी, तू अनमिट पूरनमाशी,
सब करके दूर अँधेरे हमें बक्शो नए सवेरे।
तू तो भक्तो की बिगड़ी संवारती॥

निर्धन के घर भी आ जाना



कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||

ना छत्र बना सका सोने का, ना चुनरी घर मेरे टारों जड़ी |
ना पेडे बर्फी मेवा है माँ, बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़े ||
इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ, इस विनती को ना ठुकरा जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||

जिस घर के दिए मे तेल नहीं, वहां जोत जगाओं कैसे |
मेरा खुद ही बिशोना डरती माँ, तेरी चोंकी लगाऊं मै कैसे ||
जहाँ मै बैठा वही बैठ के माँ, बच्चों का दिल बहला जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||

तू भाग्य बनाने वाली है, माँ मै तकदीर का मारा हूँ |
हे दाती संभाल भिकारी को, आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ||
मै दोषी तू निर्दोष है माँ, मेरे दोषों को तूं भुला जाना |
जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||

अब मेरी भी सुनो हे मात भवानी




दोहा: ब्रह्मा जी को आन छुड़ाया मधुकैटब के बल से |माँ ने रूप धर शिव को बचाया, भस्मासुर के छल से ||सब देवो पर हुई सहाई, माँ दुष्टों के दल से |और भक्तो की है प्यास भुझाई चरण गंगा के जल से ||
अब मेरी भी सुनो हे मात भवानी |मै तेरा ही बालक हूँ, जगत महारानी ||
सिंह सवारी करने वाली तेरी शान निराली है |तू है शारदा, तू ही लक्ष्मी, तू ही महाकाली है ||शुंभ-निशुम्भ पापी तूने संघारे,महिषासुर के जैसे तुमने ही मारे |भक्तो के सारे संकट तुमने ही टारे, मै भी हूँ आया मैया तेरे द्वारे |तेरा यश है उज्वल निर्मल जू गंगा का पानी ||
ब्रह्मा विष्णु शंकर ने भी आध्शक्ति को माना है |जय जगदम्बे जय जगदम्बे वेद पुराण बखाना है ||शक्ति से ही सेवा होती, शक्ति से ही मान है |शक्ति से ही विजयी होता हर इंसान है ||शक्ति से ही भक्ति होती, भक्ति मे कल्याण माँ |दे दो मुझे भी भक्ति, गाउन गुणगान माँ |कैसे मै गुणगान करूँ, मै तो हूँ अज्ञानी ||
कण कण मे है देखी सबने कैसे जोत समायी है |भीड़ पड़े जब भक्तो पे माँ दोडी दोडी आई है ||मेरी पुकार सुन लो, दर्श दिखा दो,कर दो दया की दृष्टि, गले से लगा लो |भक्तो का मैया तुमने भाग सवारा,आया शरण मे प्रियतम मिश्रI एक दुखिआरा |कर प्रियतम मिश्रI पे ओ मैया मेहरबानी ||

हे माँ मुझको ऐसा घर दे


हे माँ मुझको ऐसा घर दे, जिसमे तुम्हारा मंदिर हो,
ज्योत जगे दिन रैन तुम्हारी, तुम मंदिर के अन्दर हो।
हे माँ, हे माँ, हे माँ, हे माँ
जय जय माँ, जय जय माँ

इक कमरा जिसमे तुम्हारा आसन माता सजा रहे,
हर पल हर छिन भक्तो का वहां आना जान लगा रहे।
छोटे बड़े का माँ उस घर में एक सामान ही आदर हो,
ज्योत जगे दिन रैन तुम्हारी, तुम मंदिर के अन्दर हो॥

इस घर से कोई भी खाली कभी सवाली जाए ना,
चैन ना पाऊं तब तक दाती जब तक चैन वो पाए ना।
मुझको दो वरदान दया का, तुम तो दया का सागर हो,
ज्योत जगे दिन रैन तुम्हारी, तुम मंदिर के अन्दर हो॥