Tuesday, August 31, 2010

माँ

मै रोया यहां दूर देस वहां भीग गया तेरा आंचल
तू रात को सोती उठ बैठी हुई तेरे दिल में हलचल
जो इतनी दूर चला आया ये कैसा प्यार तेरा है मां
सब ग़म ऐसे दूर हुए तेरा सर पर हाथ फिरा है मां
जीवन का कैसा खेल है ये मां तुझसे दूर हुआ हूं मै
वक़्त के हाथों की कठपुतली कैसा मजबूर हुआ हूं मै
जब भी मै तन्हा होता हूँ, मां तुझको गले लगाना है
भीड़ बहुत है दुनिया में तेरी बाहों में आना है
जब भी मै ठोकर खाता था मां तूने मुझे उठाया है
थक कर हार नहीं मानूं ये तूने ही समझाया है
मै आज जहां भी पहुंचा हूँ मां तेरे प्यार की शक्ति है
पर पहुंचा मै कितना दूर तू मेरी राहें तकती है
छोती छोटी बातों पर मां मुझको ध्यान तू करती है
चौखट की हर आहट पर मुझको पहचान तू करती है
कैसे बंधन में जकड़ा हूँ दो-चार दिनों आ पाता हूँ
बस देखती रहती है मुझको आँखों में नहीं समाता हूँ
तू चाहती है मुझको रोके मुझे सदा पास रखे अपने
पर भेजती है तू ये कह के जा पूरे कर अपने सपने
अपने सपने भूल के मां तू मेरे सपने जीती है
होठों से मुस्काती है दूरी के आंसू पीती है
बस एक बार तू कह दे मां मै पास तेरे रुक जाऊंगा
गोद में तेरी सर होगा मै वापस कभी ना जाऊंगा

1 comment:

  1. कविता अच्छी लगी धन्यवाद|

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