बच्चे का निर्माण माता करती है। क्या सन्तान पैदा करने वाली प्रत्येक जननी माता होती है़ ? यह विचारणीय विषय है। सन्तान तो पशु-पक्षी भी पैदा करते हैं। परन्तु उनमें माता की भावना नहीं होती। जन्म देने मात्र से कोई भी नारी जननी हो सकती है। लेकिन माता वही है जो अपनी सन्तान को सुयोग्य बनाती है। उसका निर्माण करती है। माता, पिता का स्थान ले सकती है, परन्तु पिता माता का स्थान नहीं ले सकता।
बालक के नामकरण संस्कार पर जब माता बच्चे को लेकर यज्ञ स्थल पर आती है, तो वह बालक को उसके पिता के
हाथों में सौपती है। पिता एक बार बालक को लेकर पुनः माता को ही सौंप देता है। इसका भाव यह है कि पिता कहता है कि इसका निर्माण तुम ही करो।
मां बच्चे को नौ मास तक अपने गर्भ में सहेजती है। जन्म देने में जो कष्ट सहन करती है, उसकी कल्पना भी पिता नहीं कर सकते। फिर बच्चे का मल-मूत्र साफ करती है। माता की बच्चे के प्रति ममता को देखो कि उसके जन्म के साथ ही माता के स्तनों में दूध उतर आता है। मां बच्चे के लिए सब कुछ त्याग देती है। बच्चा बड़ा होता है, तो मां उसका पहला गुरु बन कर उसके निर्माण में जुट जाती है। माता से अधिक प्यार संसार में बच्चे को और कौन दे सकता है? कोमलता, मधुरता और ममत्व भगवान ने माता को ही प्रदान किया है। सहनशीलता में माता भूमि के समान है। बच्चा खेलते-खेलते चोट खा जाता है, परन्तु माता की स्नेहमयी गोद में बैठते ही अपनी पीड़ा को भूल जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके विभीषण को लंका का राजा बना दिया। लक्ष्मण ने लंका की सुन्दरता को देखकर भगवान से लंका में ही रहने को कहा। श्रीराम ने कहा-अपि स्वर्णमयि लंका, न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जनमभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसि। भगवान श्रीराम ने माता को स्वर्ग से भी महान बताया। यक्ष के द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर युधिष्ठिर ने उत्तर दिया- हे यक्ष ! भूमि से बड़ी माता है।
स्वामी विवेकानन्द ने माता को मनुष्य निर्माण का प्रथम विश्वविद्यालय कहा है। एक बार स्वामी विवेकानन्दजी अमेरिका गये हुए थे । एक मां अपने पुत्र के साथ आई और अपने बालक को स्वामीजी के चरणों में बैठाकर बोली स्वामीजी ! मै अपने पुत्र को विवेकानन्द बनाना चाहती हूं। कृपया उस विश्वविद्यालय का नाम बताइए, जिसमें विवेकानन्द बना है। स्वामीजी ने कहा माताजी, जिस विश्वविद्यालय में विवेकानन्द बना है, वह तो अब नहीं रहा। मां ने आश्चर्य से पूछा, क्या एक विवेकानन्द बनाकर ही कोई विश्वविद्यालय बन्द हो गया और वह भी भारत में ? स्वामीजी ने कहा-हां मां, वह विश्वविद्यालय मेरी जननी माता थी। वह अब संसार में नहीं है।
हमारा अमर इतिहास साक्षी है कि माताओं ने अपने वीर पुत्रों का निर्माण कैसे किया। वैदिक काल में महारानी मदालसा वीरांगना और विदुषी हुई। उसका कहना था कि मेरे गर्भ में जन्मे पुत्र को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ेगा अर्थात् मै उसको मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर लगा दूंगी। हुआ भी यही कि उसने अपने चार में से तीन पुत्रों को तो योगी बना दिया। चौथे को राज्य सौंपते समय उपदेश देकर चली गई। कुछ समय पश्चात् वह भी उसी मार्ग पर चल पड़ा।
रानी सुरूचि द्वारा राजा उत्तानपाद की गोदी से अलग करने पर बालक ध्रुव रोता हुआ अपनी मां सुनीति के पास गया तो मां सुनीति ने कहा- रो मत मेरे ध्रुव ! यदि तुझे तेरे पिता ने अपनी गोद में नहीं बैठाया तो कोई बात नहीं। तू अपने सच्चे पिता की शरण में जा, वह परमात्मा ही सबका पिता है। उसकी गोदी में बैठकर तू चिरकाल तक अलौकिक आनन्द को प्राप्त कर। माता का उपदेश सुनकर ध्रुव योग साधना के लिए चल पड़ा। कालान्तर में ध्रुव ने मोक्ष को प्राप्त किया।
जननी जनै तै भगत जनै, या दाता या शूर ।
ना तै जननी बांझ रहे, क्यों व्यर्थ गंवावै नूर ।।
महारानी शकुन्तला ने महर्षि कण्य के आश्रम में भरत को जन्म दिया था। वह भरत को शिक्षा देती थी- बेटा, इस बीहड़ जंगल में शेर, चीते आदि ही तेरे भाई है। तू इनसे ही मेल कर, इन्हीं के साथ खेल। भरत शेरों के दांत गिनता था। उनके साथ कुश्ती करता था। आगे चलकर यही भरत चक्रवर्ती सम्राट हुआ।
माता सुभद्रा ने अभिमन्यु को वीर, कुशल, योद्धा और चक्रव्यूह को बेधने योग्य बनाया, जिससे अभिमन्यु ने द्रोण, जयद्रथ, दुर्योधन, दुःशासन और कर्ण जैसे महारथी योद्धाओं को भी पराजित कर दिया।
माता कुन्ती ने जब शान्ति के सभी मार्गों को बन्द देखा और योगेश्वर श्रीकृष्ण से कहा, हे कृष्ण ! तुम मेरे बेटों के पास जाकर कहना कि क्षत्राणियां जिस दिन के लिए अपनी सन्तान को जन्म देती हैं, वह दिन आ गया है। अर्थात् वे युद्ध के लिए कटिबद्ध हो जाएं।
वीर माता जीजाबाई को अपने शिवा को छत्रपति बनाने लिए अपने पति से भी विमुख होना पड़ा। वह अपने शिवा को राम, कृष्ण, हनुमान, भीष्म, शंकर और महाराणा सांगा जैसे वीर महापुरुषों की कहानियां सुनाया करती थी। उसको तलवार, घुड़सवारी, तीर आदि चलाना सिखाती थी। शिवाजी की रग-रग में साहस और वीरता कूट-कूट कर भर दी थी जीजाबाई ने और फिर शिवाजी को मुगल साम्राज्य के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किर दिया। यही वह शिवाजी था जिसने औरंगजेब की नींद हराम कर दी थी और विशाल एवं सुदृढ़ मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, सरदार भगतसिंह, उधमसिंह, अशफाक उल्ला खां आदि देशभक्त वीरों को उनकी वीर माताओं ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को सहन करने योग्य बनाया।
गंगा माता ने कौरवों और पाण्डवों के पितामह अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रतधारी महारथी भीष्म को बनाया, जिन्होंने युद्ध क्षेत्र में अपने गुरु परशुराम को भी परास्त कर दिया था। जिन्होंने मौत को चुनोती दे दी थी। कई मास तक बाणों से बिंधे हुए बाणों की ही शय्या पर लेटे हुए अपनी इच्छा से ही उन्होंने इस नश्वर देह को त्यागा था। महारानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई आदि वीरांगनाओं को क्या कभी भुलाया जा सकता है?
निष्कर्ष यह है कि माता के अन्दर इतनी शक्ति विद्यमान है कि वह अपनी सन्तान को जैसा चाहे बना सकती है। राम, कृष्ण, हनुमान, भीष्म, शंकर, दयानन्द, गांधी, सुभाष, भगतसिंह जैसे महानपुरूष देशभक्त इन्हीं माताओं की गोदी में पले और महान बने।
आज मातृशक्ति सोई हुई है। वह अपने कर्त्तव्य को भूलकर साज-श़ृंगार के साथ सज-धजकर पार्टियों में जाने में ही अपनी शान समझती है। सन्तान निर्माण के लिए उसके पास समय ही नहीं है। आज आवश्यकता है, देश की माताओं को दिव्य संतान निर्माण का निश्चय करने की ! देश को महान भी ये ही बनाती हैं और नरक के गर्त में भी ये ही ले जाती हैं। इसलिए नारी को मातृत्व जुटाने के लिए सजग होने की आवश्यकता है । आज भी वही हनुमान, भीष्म, राम, कृष्ण, कपिल, कणाद आदि सन्तानें बनाने में समर्थ हैं।
Priyatam Kumar Mishra
बालक के नामकरण संस्कार पर जब माता बच्चे को लेकर यज्ञ स्थल पर आती है, तो वह बालक को उसके पिता के
हाथों में सौपती है। पिता एक बार बालक को लेकर पुनः माता को ही सौंप देता है। इसका भाव यह है कि पिता कहता है कि इसका निर्माण तुम ही करो।
मां बच्चे को नौ मास तक अपने गर्भ में सहेजती है। जन्म देने में जो कष्ट सहन करती है, उसकी कल्पना भी पिता नहीं कर सकते। फिर बच्चे का मल-मूत्र साफ करती है। माता की बच्चे के प्रति ममता को देखो कि उसके जन्म के साथ ही माता के स्तनों में दूध उतर आता है। मां बच्चे के लिए सब कुछ त्याग देती है। बच्चा बड़ा होता है, तो मां उसका पहला गुरु बन कर उसके निर्माण में जुट जाती है। माता से अधिक प्यार संसार में बच्चे को और कौन दे सकता है? कोमलता, मधुरता और ममत्व भगवान ने माता को ही प्रदान किया है। सहनशीलता में माता भूमि के समान है। बच्चा खेलते-खेलते चोट खा जाता है, परन्तु माता की स्नेहमयी गोद में बैठते ही अपनी पीड़ा को भूल जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके विभीषण को लंका का राजा बना दिया। लक्ष्मण ने लंका की सुन्दरता को देखकर भगवान से लंका में ही रहने को कहा। श्रीराम ने कहा-अपि स्वर्णमयि लंका, न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जनमभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसि। भगवान श्रीराम ने माता को स्वर्ग से भी महान बताया। यक्ष के द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर युधिष्ठिर ने उत्तर दिया- हे यक्ष ! भूमि से बड़ी माता है।
स्वामी विवेकानन्द ने माता को मनुष्य निर्माण का प्रथम विश्वविद्यालय कहा है। एक बार स्वामी विवेकानन्दजी अमेरिका गये हुए थे । एक मां अपने पुत्र के साथ आई और अपने बालक को स्वामीजी के चरणों में बैठाकर बोली स्वामीजी ! मै अपने पुत्र को विवेकानन्द बनाना चाहती हूं। कृपया उस विश्वविद्यालय का नाम बताइए, जिसमें विवेकानन्द बना है। स्वामीजी ने कहा माताजी, जिस विश्वविद्यालय में विवेकानन्द बना है, वह तो अब नहीं रहा। मां ने आश्चर्य से पूछा, क्या एक विवेकानन्द बनाकर ही कोई विश्वविद्यालय बन्द हो गया और वह भी भारत में ? स्वामीजी ने कहा-हां मां, वह विश्वविद्यालय मेरी जननी माता थी। वह अब संसार में नहीं है।
हमारा अमर इतिहास साक्षी है कि माताओं ने अपने वीर पुत्रों का निर्माण कैसे किया। वैदिक काल में महारानी मदालसा वीरांगना और विदुषी हुई। उसका कहना था कि मेरे गर्भ में जन्मे पुत्र को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ेगा अर्थात् मै उसको मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर लगा दूंगी। हुआ भी यही कि उसने अपने चार में से तीन पुत्रों को तो योगी बना दिया। चौथे को राज्य सौंपते समय उपदेश देकर चली गई। कुछ समय पश्चात् वह भी उसी मार्ग पर चल पड़ा।
रानी सुरूचि द्वारा राजा उत्तानपाद की गोदी से अलग करने पर बालक ध्रुव रोता हुआ अपनी मां सुनीति के पास गया तो मां सुनीति ने कहा- रो मत मेरे ध्रुव ! यदि तुझे तेरे पिता ने अपनी गोद में नहीं बैठाया तो कोई बात नहीं। तू अपने सच्चे पिता की शरण में जा, वह परमात्मा ही सबका पिता है। उसकी गोदी में बैठकर तू चिरकाल तक अलौकिक आनन्द को प्राप्त कर। माता का उपदेश सुनकर ध्रुव योग साधना के लिए चल पड़ा। कालान्तर में ध्रुव ने मोक्ष को प्राप्त किया।
जननी जनै तै भगत जनै, या दाता या शूर ।
ना तै जननी बांझ रहे, क्यों व्यर्थ गंवावै नूर ।।
महारानी शकुन्तला ने महर्षि कण्य के आश्रम में भरत को जन्म दिया था। वह भरत को शिक्षा देती थी- बेटा, इस बीहड़ जंगल में शेर, चीते आदि ही तेरे भाई है। तू इनसे ही मेल कर, इन्हीं के साथ खेल। भरत शेरों के दांत गिनता था। उनके साथ कुश्ती करता था। आगे चलकर यही भरत चक्रवर्ती सम्राट हुआ।
माता सुभद्रा ने अभिमन्यु को वीर, कुशल, योद्धा और चक्रव्यूह को बेधने योग्य बनाया, जिससे अभिमन्यु ने द्रोण, जयद्रथ, दुर्योधन, दुःशासन और कर्ण जैसे महारथी योद्धाओं को भी पराजित कर दिया।
माता कुन्ती ने जब शान्ति के सभी मार्गों को बन्द देखा और योगेश्वर श्रीकृष्ण से कहा, हे कृष्ण ! तुम मेरे बेटों के पास जाकर कहना कि क्षत्राणियां जिस दिन के लिए अपनी सन्तान को जन्म देती हैं, वह दिन आ गया है। अर्थात् वे युद्ध के लिए कटिबद्ध हो जाएं।
वीर माता जीजाबाई को अपने शिवा को छत्रपति बनाने लिए अपने पति से भी विमुख होना पड़ा। वह अपने शिवा को राम, कृष्ण, हनुमान, भीष्म, शंकर और महाराणा सांगा जैसे वीर महापुरुषों की कहानियां सुनाया करती थी। उसको तलवार, घुड़सवारी, तीर आदि चलाना सिखाती थी। शिवाजी की रग-रग में साहस और वीरता कूट-कूट कर भर दी थी जीजाबाई ने और फिर शिवाजी को मुगल साम्राज्य के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किर दिया। यही वह शिवाजी था जिसने औरंगजेब की नींद हराम कर दी थी और विशाल एवं सुदृढ़ मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, सरदार भगतसिंह, उधमसिंह, अशफाक उल्ला खां आदि देशभक्त वीरों को उनकी वीर माताओं ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को सहन करने योग्य बनाया।
गंगा माता ने कौरवों और पाण्डवों के पितामह अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रतधारी महारथी भीष्म को बनाया, जिन्होंने युद्ध क्षेत्र में अपने गुरु परशुराम को भी परास्त कर दिया था। जिन्होंने मौत को चुनोती दे दी थी। कई मास तक बाणों से बिंधे हुए बाणों की ही शय्या पर लेटे हुए अपनी इच्छा से ही उन्होंने इस नश्वर देह को त्यागा था। महारानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई आदि वीरांगनाओं को क्या कभी भुलाया जा सकता है?
निष्कर्ष यह है कि माता के अन्दर इतनी शक्ति विद्यमान है कि वह अपनी सन्तान को जैसा चाहे बना सकती है। राम, कृष्ण, हनुमान, भीष्म, शंकर, दयानन्द, गांधी, सुभाष, भगतसिंह जैसे महानपुरूष देशभक्त इन्हीं माताओं की गोदी में पले और महान बने।
आज मातृशक्ति सोई हुई है। वह अपने कर्त्तव्य को भूलकर साज-श़ृंगार के साथ सज-धजकर पार्टियों में जाने में ही अपनी शान समझती है। सन्तान निर्माण के लिए उसके पास समय ही नहीं है। आज आवश्यकता है, देश की माताओं को दिव्य संतान निर्माण का निश्चय करने की ! देश को महान भी ये ही बनाती हैं और नरक के गर्त में भी ये ही ले जाती हैं। इसलिए नारी को मातृत्व जुटाने के लिए सजग होने की आवश्यकता है । आज भी वही हनुमान, भीष्म, राम, कृष्ण, कपिल, कणाद आदि सन्तानें बनाने में समर्थ हैं।
Priyatam Kumar Mishra
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