Tuesday, April 8, 2014

गीता - सार

गीता - सार


  • क्यों व्यर्थ की चिंता करते होकिससे व्यर्थडरते होकौन तुम्हें मार सक्ता हैआत्मा नापैदा होती है मरती है।
  • जो हुआवह अच्छा हुआजो हो रहा हैवहअच्छा हो रहा हैजो होगावह भी अच्छा हीहोगा। तुम भूत का पश्चाताप  करो। भविष्यकी चिन्ता  करो। वर्तमान चल रहा है।
  • तुम्हारा क्या गयाजो तुम रोते होतुम क्यालाए थेजो तुमने खो दियातुमने क्या पैदाकिया थाजो नाश हो गया तुम कुछ लेकरआएजो लिया यहीं से लिया। जो दियायहींपर दिया। जो लियाइसी (भगवानसे लिया।जो दियाइसी को दिया।
  • खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जोआज तुम्हारा हैकल और किसी का थापरसोंकिसी और का होगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नतातुम्हारे दु:खों का कारण है।
  • परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्युसमझते होवही तो जीवन है। एक क्षण मेंतुम करोड़ों के स्वामी बन जाते होदूसरे हीक्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा,छोटा-बड़ाअपना-परायामन से मिटा दो,फिर सब तुम्हारा हैतुम सबके हो।
  •  यह शरीर तुम्हारा है तुम शरीर के हो।यह अग्निजलवायुपृथ्वीआकाश से बनाहै और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मास्थिर है - फिर तुम क्या हो?
  • तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो।यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारेको जानता है वह भयचिन्ताशोक से सर्वदामुक्त है।
  • जो कुछ भी तू करता हैउसे भगवान के अर्पणकरता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्तका आन्दन अनुभव करेगा।

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