Tuesday, August 31, 2010

माँ

मै रोया यहां दूर देस वहां भीग गया तेरा आंचल
तू रात को सोती उठ बैठी हुई तेरे दिल में हलचल
जो इतनी दूर चला आया ये कैसा प्यार तेरा है मां
सब ग़म ऐसे दूर हुए तेरा सर पर हाथ फिरा है मां
जीवन का कैसा खेल है ये मां तुझसे दूर हुआ हूं मै
वक़्त के हाथों की कठपुतली कैसा मजबूर हुआ हूं मै
जब भी मै तन्हा होता हूँ, मां तुझको गले लगाना है
भीड़ बहुत है दुनिया में तेरी बाहों में आना है
जब भी मै ठोकर खाता था मां तूने मुझे उठाया है
थक कर हार नहीं मानूं ये तूने ही समझाया है
मै आज जहां भी पहुंचा हूँ मां तेरे प्यार की शक्ति है
पर पहुंचा मै कितना दूर तू मेरी राहें तकती है
छोती छोटी बातों पर मां मुझको ध्यान तू करती है
चौखट की हर आहट पर मुझको पहचान तू करती है
कैसे बंधन में जकड़ा हूँ दो-चार दिनों आ पाता हूँ
बस देखती रहती है मुझको आँखों में नहीं समाता हूँ
तू चाहती है मुझको रोके मुझे सदा पास रखे अपने
पर भेजती है तू ये कह के जा पूरे कर अपने सपने
अपने सपने भूल के मां तू मेरे सपने जीती है
होठों से मुस्काती है दूरी के आंसू पीती है
बस एक बार तू कह दे मां मै पास तेरे रुक जाऊंगा
गोद में तेरी सर होगा मै वापस कभी ना जाऊंगा

Saturday, August 28, 2010

चिंता नहीं चिंतन की है महत्ता

जीवन में आगे बढ़ने के लिए चिंतन बहुत जरूरी है। चिंतनशील मस्तिष्क प्रगतिशील मनुष्य की निशानी है। आप चिंतन के जरिए ही अपनी खूबियों और खामियों के बारे में गहराई से जानते हुए जीवन में आगे बढ़ने की राह प्रशस्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि विभिन्न स्थितियों में चिंतन की क्या महत्ता है।
सफलता की स्थिति में : सफलता की स्थिति में चिंतन करना इसलिए अनिवार्य होता है कि आप इसके जरिए यह जान सकते हैं कि आपने कामयाबी को हासिल करने के लिए किन चीजों का सहारा लिया, आपके ताकतवर पक्ष कौन से रहे, आगे के सफर में कामयाबी के लिए और किस रास्ते का अनुसरण किया जाए इत्यादि-इत्यादि। असफलता की अपेक्षा सफलता की स्थिति में अपने चिंतन को सतत जारी रखना और ज्यादा जरूरी हो जाता है। सफलता पाना जितना मुश्किल है, उसे बनाए रखना और आगे के सफर में कामयाब होना उससे भी ज्यादा मुश्किल।
असफलता की स्थिति में: आप चाहे कारोबार में हों, अध्ययन कर रहे हों या अपने परिवार की ही किसी समस्या के निराकरण में आपको असफलता हाथ लगी हो; ऐसे मामलों में भी चिंतन बहुत जरूरी है, ताकि आगे उस असफलता को आप न दोहरा सकें। असफलता के दौरान आपने क्या गलतियां की, आपके वीक पॉइंट्स क्या रहे, प्रतिद्वंद्वी को आगे बढ़ने के लिए आपने कहां स्पेस दिया, समस्या को और ज्यादा बढ़ने के लिए जिम्मेदार तत्व क्या रहे इत्यादि बातों पर चिंतन करना श्रेयस्कर रहता है।
मध्य की स्थिति: मध्य की स्थिति उसे कहा जाएगा, जब आप अपने मिशन की शुरुआत करने जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में आपका चिंतन इस तरह का होना चाहिए।
आप अपने काम को किस तरह से अंजाम दे सकते हैं। इस काम के लिए आपको किन संसाधनों की आवश्यकता होगी।आपके कमजोर पक्ष क्या हैं और उन्हें पहले ही किस तरह मजबूत कर लिया जाए।यदि अमुक प्रकार की कोई समस्या आड़े आ गई तो आप उससे कैसे बाहर निकलेंगे आदि-आदि।चिंतन एकांत में करें और छोटी-छोटी चीजों से इसकी शुरुआत करें। याद रखें दुनिया में जितनी भी महान हस्तियां हैं, उन्होंने चिंता से नहीं वरन् चिंतन से उपलब्धियां हासिल की है। अत: चिंतनशील बनें।

Friday, August 13, 2010

अनमोल वचन

1. हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है.
2. यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते.
3. अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है.
4 .वही सबसे तेज चलता है, जो अकेला चलता है।
5. प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है।
6. ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।
7. एकाग्रता से ही विजय मिलती है।
8. कीर्ति वीरोचित कार्यो की सुगन्ध है।
9. भाग्य साहसी का साथ देता है।
10. सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है।
11. विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है।
12. कार्य उद्यम से सिद्ध होते है, मनोरथो से नही।
13. संकल्प ही मनुष्य का बल है।
14. प्रचंड वायु मे भी पहाड विचलित नही होते।
15. कर्म करने मे ही अधिकार है, फल मे नही।
16. मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
17. अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता।
18. मुस्कान प्रेम की भाषा है।
19. सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
20. अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता।
21. प्रसन्नता स्वास्थ्य देती है, विषाद रोग देते है।
22. प्रसन्न करने का उपाय है, स्वयं प्रसन्न रहना।
23. अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नही होता।
24. एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।
25. दूसरो से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।
26. समय महान चिकित्सक है।
27. समय किसी की प्रतीक्षा नही करता।
27. हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है।
28. एक झूठ छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते है।
29. प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते है।
30. बिना गुरु के ज्ञान नही होता। 31. आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है।
32. जिग्यासा के बिना ज्ञान नही होता।
33. बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है।
34 अल्प ज्ञान खतरनाक होता है।
35. कर्म सरल है, विचार कठिन।
36. उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
37. धन अपना पराया नही देखता।
38. जैसा अन्न, वैसा मन।
39. अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है।
40. बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नही है।
41. अन्याय मे सहयोग देना, अन्याय के ही समान है।
42. विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है।

Monday, August 9, 2010

ये जीवन है, इस जीवन का

ये जीवन है, इस जीवन का यही है - यही है - यही है रंगरूप थोड़े गम हैं, थोडी खुशियाँ यही है - यही है - यही है छाओं धूप ये जीवन है...ये न सोचो इसमे अपनी हार है के जीत है इसे अपना लो जो भी जीवन की रीत है ये जिद छोड़ो, बन्धन यूं न तोड़ो हर पल एक दर्पण है ये जीवन है...धन से न दुनिया से, घर से न द्वार से सासों की डोर बंधी है, प्रीतम के प्यार से दुनिया छूटे, पर न टूटे, ये ऐसा बन्धन है ये जीवन है...ये जीवन है, इस जीवन का यही है - यही है - यही है रंगरूप थोड़े गम हैं, थोडी खुशियाँ यही है - यही है - यही है छाओं धूप ये जीवन है...

आपके अंदर क्या हैं?

एक अजनबी किसी गांव में पहुंचा। उसने उस गांव के बाहर बैठे एक बूढ़े आदमी से पूछा क्या इस गांव के लोग अच्छे व दोस्ती करने वाले हैं। उस बूढ़े आदमी ने सीधे उसके प्रश्न का उतर देने के बजाय उसी से पूछ लिया कि बेटा तुम जहां से आए हो वहां के लोग कैसे? वह अजनबी गुस्से से बोला बहुत बुरे, पापी और अन्यायी। सारी परेशानियों के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। बूढ़ा थोड़ी देर सोचता रहा और बोला यहां के लोग भी वैसे ही हैं, तुम इन्हें भी वैसा ही पाओगे। वह व्यक्ति जा भी नहीं पाया था कि एक दूसरे व्यक्ति ने आकर वही प्रश्न दोहराया तो वृद्ध ने उससे भी वही प्रश्न किया कि बेटा तुम बताओ जहां से तुम आए हो वहां के लोग कैसे हैं? उस व्यक्ति की आंखें आंसुओं से भर गईं और वह बोला बहुत प्यार करने वाले, दयालु, मेरी सारी खुशी का कारण वे लोग ही थे। वह वृद्ध बोला यहां के लोग भी ऐसे ही हैं, तुम यहां के लोगों को भी कम दयालु नहीं पाओगे। मनुष्य-मनुष्य में भेद नहीं है। संसार दर्पण है जो हम दूसरो में देखते है वह अपनी ही प्रतिक्रिया है। जब तक सभी में शिव व सुन्दर दिखाई न देने लगे, तब तक यही सोचना चाहिये कि स्वयं में ही कोई खोट है।लाइफ का फंडा- जो खुद मे ही नहीं है उसे दूसरों में खोजना असंभव है। जो जैसा होता है उसे दूसरे भी वैसे ही नजर आते हैं। सुन्दर को खोजने के लिए सारी धरती भटक लें पर जो खुद के अंदर ही नहीं है, उसे कहीं भी पाना असंभव है।

हृदय कभी नहीं भरता

एक महल के द्वार पर भीड़ लगी थी। किसी फकीर ने राजा से भीख मांगी थी। राजा ने उससे कहा था जो भी चाहते हो मांग लो। वह राजा जो भी सुबह सबसे पहले उससे भीख मांगता था वह उसे इच्छित वस्तु देता था। उस दिन वह भिखारी सबसे पहले राजा के महल पहुंचा था। फकीर ने राजा के आगे अपना छोटा सा पात्र बढ़ाया और बोला इसे सोने की मुद्राओं से भर दो। राजा ने उसके पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली तो उसे पता चला की वह पात्र जादुई है। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई वह उतना अधिक खाली होता गया। फकीर बोला नहीं भर सकें तो वैसा बोल दे मैं खाली पात्र लेकर चला जाउंगा। ज्यादा से ज्यादा लोग यही कहेंगे कि राजा अपना वचन पूरा नहीं कर सका। राजा ने अपना सारा खजाने खाली कर दियें,लेकिन खाली पात्र खाली ही था। उसके पास जो कुछ था, सब उस पात्र में डाल दिया गया लेकिन वह पात्र न भरा तो न भरा। तब राजा ने पूछा भिक्षु तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। इसे भरना मेरे बस की बात नहीं हैं। क्या मैं पूछ सकता हुं कि इस पात्र का रहस्य क्या है? कोई विशेष रहस्य नहीं है यह इंसान के हृदय से बना है। क्या आपको पता नहीं है कि मनुष्य का हृदय कभी नहीं भरता धन से, पद से, ज्ञान से, किसी से भी नहीं, किसी से भी भरो वह खाली ही रहेगा। क्योंकि वह इन चीजों से भरने के लिए बना ही नहीं है। इस सत्य को न जानने के कारण ही इंसान जितना पाता है उतना ही दरिद्र होता जाता है। इंसान का हृदय कुछ भी पाकर शांत नहीं होता क्यों? क्योंकि हृदय परमात्मा को पाने के लिए बना है।

Tuesday, August 3, 2010

तीन बातें

मैं उंगलियों पर गिनी जा सकें, इतनी बातें कहता हूं:1. मन को जानना है, जो इतना निकट है, फिर भी इतना अज्ञात है।2. मन को बदलना है, जो इतना हठी है, पर परिवर्तित होने को इतना आतुर है।3. मन को मुक्त करना है, जो पूरा बंधन में है, किंतु 'अभी और यहीं' मुक्त हो सकता है।ये तीन बातें भी कहने की हैं, करना तो केवल एक ही काम है। वह है : मन को जानना। शेष दो उस एक के होने पर अपने आप हो जाती हैं। ज्ञान ही बदलाहट है, ज्ञान ही मुक्ति है।यह कल कहता था कि किसी ने पूछा, 'यह जानना कैसे हो?'यह जानना-जागने से होता है। शरीर और मन दोनों की हमारी क्रियाएं मू‌िर्च्छत हैं। प्रत्येक क्रिया के पीछे जागना आवश्यक है। मैं चल रहा हूं, मैं बैठा हूं या में लेटा हूं, इसके प्रति सम्यक स्मरण चाहिए। मैं बैठना चाहता हूं, इस मनोभाव या इच्छा के प्रति भी जागना है। चित्त पर क्रोध है या क्रोध नहीं है, इस स्थिति को भी देखना है। विचार चल रहे हैं या नहीं चल रहे हैं, उनके प्रति भी साक्षी होना है।यह जागरण दमन से या संघर्ष से नहीं हो सकता है। कोई निर्णय नहीं लेना है। सद्-असद् के बीच कोई चुनाव नहीं करना है। केवल जागना है- बस जागना है। और जागते ही मन का रहस्य खुल जाता है। मन जान लिया जाता है। और केवल जानने से परिवर्तन हो जाता है। और परिपूर्ण जानने से मुक्ति हो जाती है।इससे मैं कहता हूं कि मन की बीमारी से मुक्ति आसान है, क्योंकि यहां निदान ही उपचार है।(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

मनुष्य के साथ क्या हो गया है?

मैं सुबह उठता हूं। देखता हूं, गिलहरियों को दौड़ते, देखता हूं, सूरज की किरणों में फूलों को खिलते, देखता हूं, संगीत से भरी प्रकृति को। रात्रि सोता हूं। देखता हूं, तारों से झरते मौन को, देखता हूं, सारी सृष्टिं पर छा गयी आनंद-निंद्रा को। और फिर, अपने से पूछने लगता हूं कि मनुष्य को क्या हो गया है?सब कुछ आनंद से तरंगित है, केवल मनुष्य को छोड़कर। सब कुछ आनंद से आन्दोलित है, केवल मनुष्य को छोड़ कर। सब दिव्य शांति में विराजमान है, केवल मनुष्य को छोड़ कर।क्या मनुष्य इस सब का भागीदार नहीं है? क्या मनुष्य कुछ पराया है? अजनबी है?पर परायापन अपने हाथों लाया गया है। यह टूट अपने हाथों पैदा की गई है। स्मरण आती है, बाइबिल की पुरानी कथा। मनुष्य 'ज्ञान का फल' खाकर आनंद के राज्य से बहिष्कृत हो गया है। यह कथा कितनी सत्य है। ज्ञान ने, बुद्धि ने, मन ने मनुष्य को जीवन से तोड़ दिया है। वह सत्ता में हो कर सत्ता से बाहर हो गया है।ज्ञान को छोड़ते ही, मन से पीछे हटते ही, एक ये लोक का उदय होता है। उसमें हम प्रकृति से एक हो जाते हैं। कुछ अलग नहीं होता है, कुछ भिन्न नहीं होता है। सब एक शांति में स्पंदित होने लगता है।यह अनुभूति ही 'ईश्वर' है।ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है। ईश्वर की कोई अनुभूति नहीं होती है, वरन् एक अनुभूति का नाम ही ईश्वर है। 'उसका' कोई साक्षात नहीं है, वरन् एक साक्षात का ही वह नाम है।इस साक्षात में मनुष्य स्वस्थ हो जाता है। इस अनुभूति में वह अपने 'घर' आ जाता है। इस प्रकाश में वह फूलों और पत्तियों के सहज-स्फूर्त आनंद का साझीदार होता है। इस एक ओर से वह मिट जाता है और दूसरी ओर सत्ता को पा लेता है। यह उसकी मृत्यु भी है और उसका जीवन भी है।(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)