Friday, February 15, 2013

क्यों होता है दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन?



                                                        


गणेश-लक्ष्मी पूजन की कथा

एक बार की बात है, एक राजा ने किसी लकड़हारे पर प्रसन्न होकर उसे चंदन की लकड़ी का पूरा जंगल दे दिया। लेकिन लकड़हारा बुद्धू और गंवार था। वह चंदन की लकड़ी का महत्व नहीं समझता था। धीरे-धीरे उसने पूरा जंगल साफ कर दिया और पुनः अपनी बदहाल अवस्था में पहुंच गया क्योंकि वह सारी लकड़ियां भोजन पकाने में जला चुका था। 

राजा ने सोचा यह सच है कि बुद्धि होती है तभी लक्ष्मी अर्थात धन का संचय किया जा सकता है। गणपति बुद्धि के स्वामी हैं, बुद्धि-दाता हैं। यही कारण है कि लक्ष्मी एवं गणपति की एक साथ पूजा का विधान है ताकि धन और बुद्धि एक साथ मिलें। 

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार एक साधु के मन में राजसी सुख भोगने का विचार आया। यह सोचकर उसने लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या शुरू कर दी। लक्ष्मीजी प्रसन्न हुईं और उसे मनोवांछित वरदान दे दिया। वरदान को सफल करने के लिए वह साधु एक राजा के दरबार में पहुंचा और सीधा सिंहासन के पास पहुंचकर झटके से राजा का मुकुट नीचे गिरा दिया। 

यह देखकर राजा और सभासदों की भृकुटियां तन गईं। किंतु तभी मुकुट में से एक विषैला सर्प निकला। यह देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और सोचा कि इस साधु ने सर्प से उसकी रक्षा की है। इसलिए उसे अपना मंत्री बना लिया।

एक बार साधु ने सभी को फौरन राजमहल से बाहर जाने को कहा। राजमहल में सभी उनके चमत्कार को नमस्कार करते थे। इसलिए सभी ने राजमहल खाली कर दिया। अगले ही क्षण वह धड़धड़ाता हुआ खडंहर बन गया। सभी ने उसकी प्रंशसा की। अब साधु के कहे अनुसार सभी कार्य होने लगे। यह सब देखकर साधु के मन में अहंकार उत्पन्न हो गया और वह स्वयं के आगे सबको तुच्छ समझने लगा। 

एक दिन राजमहल के एक कक्ष में उसने गणेशजी की प्रतिमा देखी। उसने आदेश देकर वह मूर्ति वहां से हटवा दी। एक दिन दरबार लगा था। साधु ने राजा से कहा- “महाराज! आप अपनी धोती तुरंत उतार दें, इसमें सर्प है।” राजा उनका चमत्कार पहले भी देख चुका था, इसलिए उसने धोती उतार दी। लेकिन उसमें सर्प नहीं निकला। 

यह देख राजा को बहुत क्रोध आया। उसने साधु को काल कोठरी में डलवा दिया। साधु पुनः तप करने लगा। स्वप्न में लक्ष्मी ने उससे कहा-“मूर्ख! तूने राजमहल से गणेशजी की मूर्ति हटवा दी। वे बुद्धि के देवता हैं। तूने उन्हें रुष्ट कर दिया, इसलिए उन्होंने तेरी बुद्धि हर ली।”   

साधु को अपनी गलती का पता चला। तब उसने गणपति को प्रसन्न किया। गणपति के प्रसन्न होते ही राजा कालकोठरी में गया और साधु से क्षमा मांग कर उसे पुनः मंत्री बना दिया। मंत्री बनते ही साधु ने गणपति को पुनः स्थापित किया। साथ ही वहां लक्ष्मी की मूर्ति भी स्थापित की। 

 इस प्रकार कहा गया है कि धन के लिए बुद्धि का होना आवश्यक है। दोनों साथ होंगी तभी मनुष्य सुख एवं समृद्धि में रह सकता है। यही कारण है कि दिवाली पर लक्ष्मी एवं गणेश के रूप में धन एवं बुद्धि की पूजा होती है। 





Priyatam Kumar Mishra

लक्ष्मी के साथ सरस्वती और गणेश की पूजा जरूरी क्यों


दिवाली पर हम लक्ष्मी की पूजा करते है। लेकिन लक्ष्मी के पूजन के साथ हम चित्र में मौजूद गणेश और सरस्वती की भी पूजा करते है। आखिर लक्ष्मी, सरस्वती और गणपति में क्या रिश्ता है कि तीनों देवी-देवता एक साथ पूजे जाते है। इसके अलावा कमल पर बैठी लक्ष्मी, पीछे दो हाथी भी हमें कई बातें बताते है। आइये जानते है कि यह चित्र हमें क्या सिखाता है।
सरस्वती ज्ञान की देवी हैं और गणपति बुद्वि के देवता है। अगर हम धन के लिए लक्ष्मी का आवाहन करते है तो सरस्वती और गणेश को भी बुलाएं। धन आने पर उसे अपने ज्ञान से संभालें और बुद्वि के उपयोग से उसे निवेश करे। इससे लक्ष्मी का
स्थायी निवास होगा।
अगर हम गौर करें तो दिवाली पर इसी चित्र की पूजा की जाती है। सरस्वती लक्ष्मी की दांयी और गणपति बांई ओर बैठे है। मानव का दांयी ओर का मस्तिष्क ज्ञान के लिए होता है। उस ओर हमारा ज्ञान एकत्र होता है और बांई ओर का मस्तिष्क रचनात्मक होता है। गणपति बुद्वि के देवता है। हमारी बुद्वि रचनात्मक होनी चाहिए। लक्ष्मी कमल के फूल पर बैठी हैं कमल को सबसे पवित्र फूल माना गया है। इसका अर्थ हम जिस जरिए से धन कमाते हैं वह बहुत पवित्र होना चाहिए।


Priyatam Kumar Mishra