Friday, December 24, 2010

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी

उसको नहीं देखा हम ने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी , क्या होगी

उसको नहीं देखा हम ने कभी
इंसान तो क्या देवता भी
आँचल में पले तेरे
है स्वर्ग इसी दुनिया में
क़दमों के तले तेरे
ममता ही लुटाये जिसके नयन ओओओओ
ममता ही लुटाये जिसके नयन
ऐसी कोई मूरत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी , क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी
क्यूँ धुप जलाये दुखो की
क्यूँ ग़म की घटा बरसे
येः हाथ दुआओं वाले
रहते हैं सदा सर पें
तू है तो अंधेरे पथ में हमें ओओओओ
तू है तो अंधेरे पथ में हमें
सूरज की ज़रूरत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी , क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी
कहते हैं तेरी शान में जो
कोई ऊँचे बोल नहीं
भगवान के पास भी माता
तेरे प्यार का मोल नहीं
हम तो येही जाने तुझ से बड़ी ओओओओ
हम तो येही जाने तुझ से बड़ी
संसार की दौलत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी , क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी , क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी

पर इसकी ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी , क्या होगी

Thursday, December 23, 2010

दुनिया में जीने से ज्यादा उलझन है माँ

माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा
ओ माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा

हाथों की लकीरें बदल जायेंगी
ग़म की येः जंजीरें पिघल जायेंगी

हो खुदा पे भी असर
तू दुआओं का है घर



मेरी माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा
ओ माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा
बिगड़ी किस्मत भी संवर जायेगी
जिंदगी तराने खुशी के जायेगी
तेरे होते किसका डर
तू दुआओं का है घर


मेरी माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा
ओ माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा


यूँ तो मैं सब से न्यारा हूँ
तेरा माँ मैं दुलारा हूँ
यूँ तो मैं सब से न्यारा हूँ
पर तेरा माँ मैं दुलारा हूँ
दुनिया में जीने से ज्यादा उलझन है माँ
तू है अमर का जहान
तू गुस्सा करती है बड़ा अच्छा लगता है
तू कान पकड़ती है बड़ी ज़ोर से लगता है मेरी माँ


मेरी माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा
ओ माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा



हाथों की लकीरें बदल जायेंगी
ग़म की येः जंजीरें पिघल जायेंगी
हो खुदा पे भी असर
तू दुआओं का है घर

मेरी माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा
ओ माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा

माँ मेरी तू है महान देवी देवता समान

माँ मेरी तू है महान देवी देवता समान ,
तेरे पग की धूल मैं ललाट से लगाऊंगा ।
तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !

जन्म देती हँसके सारी पीड़ाये सहन करे ,
है ख़ाक मेरी ज़िंदगी जो उसको मैं दुखाऊंगा ।
ठंड बाँट ली थी मेरी , छाती से लगा बदन ,
मैं आज तेरी आरजू को पूरा कर दिखाऊंगा ।

तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !


तू न सोई रातभर सुलाया मुझको थपकी मार ,
तेरी लोरी और कहानी भूल मैं न पाउँगा ।
मुझको जब भी कष्ट हुआ तू भी रोई बार बार ,
आज तेरे सारे दुःख मैं हस के झेल जाऊंगा ।

तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा


ऐ मेरे प्रभु तू देना माँ के गम सभी मुझे ,
मैं अपने सुख से माँ की झोलियों को भरता जाऊंगा ।
और थक जो जाऊँ मैं कभी माँ गोदी मे लेना मुझे ,
हर जन्म - जन्म माँ तेरी ही कोख मे समाऊंगा ।

माँ मेरी तू है महान देवी देवता समान ,
तेरे पग की धूल मैं ललाट से लगाऊंगा ।
तेरे प्यार की पवित्रता है गंगा के समान ,
जिंदगी भी कम रहेगी मोल जो चुकाऊंगा !

Friday, December 17, 2010

किसी की ज़िन्दगी की बहुत बड़ी खुशी हो आप

निगाहें रहती हैं किसी के इंतज़ार में,
दिल धड़कता है इक अंजाने के प्यार में,
कितना हसीन होगा वो दिन जब दीदार उनका होगा,
किसी न किसी को तो इंतजार मेरा भी होगा।

मयखाने में जाम टूट जाता है,
ईश्क में दिल टूट जाता है,
जाने क्या रिश्ता है दोनों में,
जाम टूटे तो ईश्क याद आता है,
दिल टूटे तो जाम याद आता है।

माना के मेरे इश्क में दर्द नहीं था,
पर दिल मेरा बेदर्द नहीं था।
होती थी मेरी आँखों से आंसु की बरसात,
पर उनके लिए आंसु और पानी में कोई फर्क नहीं था।

उदास लम्हों की कोई याद न रखना,
तुफां में भी अपना वजूद सम्भाल कर रखना
किसी की ज़िन्दगी की बहुत बड़ी खुशी हो आप
उसी के लिए हमेशा अपना ख्याल रखना।

बात ऐसी हो कि जजबात कम न हों,
ख्यालात ऐसे हों कि कभी गम न हों,
दिल के कोने में इतनी सी जगह रखना,
के खाली-खाली सा लगे जब हम न हों।

ज़ुबां तो बन्द है फिर भी हम बात करते हैं,
दूर रहकर भी सदा तेरे पास रहते हैं,
आँखोँ से बहे अश्क तो दिल ये कहता है,
तूं न रोना फिर कभी, तेरे साथ हम रहते हैं।

नाराज़ होना आपसे, गलती कहलायेगी,
अगर आप हमसे नाराज़ हो गये तो....
ये सांसे थम जायेंगी
हंसते रहना हमेशा
आपकी हंसी से हमारी
जिन्दगी संवर जायेगी।

आप हर मंजिल को मुश्किल समझते हैं,
हम आपको मंजिल समझते हैं
बड़ा फर्क है आपके और हमारे नज़रिये में
आप हमें सपने और हम आपको अपने समझते हैं।

आप नहीं तो ज़िन्दगी में क्या रह जायेगा,
दूर तक तन्हाईयों का सिलसिला रह जायेगा
हर कदम पर साथ चलना मेरे दोस्त
वरना आपका ये दोस्त तन्हा रह जायेगा।

आपको दिल में बसाए रखता हूं,
और दुनियाँ को भुलाए रखता हूँ,
आपको मेरी नज़र न लग जाए,
इस लिए नज़रे झुकाए रखता हूं।

सारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहेगा
ज़िन्दगी बीत जायेगी वो लम्हा याद रहेगा
जाने क्या बात ठीक उन दोस्तों में
महफिल भूल जाय6गें बस वो दोसताना याद रहेगा।

तकदीर ने चाहा तकदीर ने बताया
तकदीर ने आपको और हमको मिलाया
खुशनसीब थे हम या वो पल
जब आप सा अनमोल दोस्त
इस जिन्दगी में आया

कभी खामोशी भी बहुत कुछ कहाँ जाती है
तड़फने के लिए सिर्फ याद रह जाती है
क्या फर्क पड़ता है दिल हो या कागज़
जलने के बाद तो सिर्फ राख रह जाती है।

इश्क ने इंसान को क्या से क्या बना दिया
किसी को कवि तो किसी को कातिल बना दिया
दो फूलों को भी ना उठा सकती ठीक मुमताज
और शांहजां ने उस पर ताजमहल बना दिया।

हौंठों पे दिल के तराने नहीं आते
साहिल पे समन्दर के फसाने नहीं आते
नींद में भी खुल जाती हैं पलकें
आँखों को ख्वाब छुपाने नहीं आते।

फिज़ा पर असर हवाओं का होता है
मुहब्बत पर असर अदाओं का होता है
कोई ऐसे ही किसी का दिवाना नहीं होता
कुछ तो कसूर निगाहों का होता है।

देखो तो ख्वाब है ज़िन्दगी,
पढ़ो तो किताब है ज़िन्दगी।
सुनो तो ज्ञान है ज़िन्दगी,
हंसते रहो तो आसान है ज़िन्दगी,
और प्यार से जीने का नाम है ज़िन्दगी।

कोई है जो दुआ करता है,
अपनों में हमें भी गिना करता है।
बहुत खुशनसीब समझते हैं हम खुद को,
दूर रहकर भी जब कोई याद किया करता है।

मेरे दिल की किताब को पढ़ना कभी,
सपनों में आके मुझसे मिलना कभी।
मैंने दुनियाँ सजाई है तेरे लिए,
मेरी नज़रों की उम्मीद बनना कभी।

बहुत दूर है सितारों से रोशन जहां,
जरा हम कदम बन के मेरे साथ चलना कभी।
बहुत नाज़ुक सीने में दिल है मेरा,
तुम अन्दाज़-ए-मुहब्बत बनके धड़कना कभी।

रात होगी तो चाँद दिखाई देगा,
ख्वाबों में आपको मेरा ही चेहरा दिखाई देगा।
ये मुहब्बत है जरा सोच कर करना,
एक आँसु भी गिरा तो सुनाई देगा।

मिले हर जन्म में आप सा यार,
दुआ करते हैं रब से बार-बार,
चाहे क्यों न ठुकरा दे हमें ये दुनियां,
पर मिलता रहे आप जैसे दोस्तों का प्यार।

दोस्त का प्यार किसी दुआ से कम नहीं होता,
दोस्त चाहे कितनी भी दूर हो गम नहीं होता,
प्यार में अक्सर दोस्ती कम हो जाती है,
पर दोस्ती में प्यार कभी कम नहीं होता।

आप नहीं तो जिन्दगी में क्या रह जायेगा,
दूर तक तन्हाईयों का सिलसिला रह जायेगा,
हर कदम पर मेरे साथ चलना दोस्त,
वरना आपका ये दोस्त तन्हा रह जायेगा।

बहते अश्कों की ज़ुबान नहीं होती,

लफ़्ज़ों में मोहब्बत बयां नहीं होती,

मिले जो प्यार, तो कदर करना,

किस्मत हर किसी पर मेहरबां नहीं होती।

संतोष का पुरस्कार

आसफउद्दौला नेक बादशाह था। जो भी उसके सामने हाथ फैलाता, वह उसकी झोली भर देता था। एक दिन उसने एक फकीर को गाते सुना- जिसको न दे मौला उसे दे आसफउद्दौला। बादशाह खुश हुआ। उसने फकीर को बुलाकर एक बड़ा तरबूज दिया। फकीर ने तरबूज ले लिया, मगर वह दुखी था। उसने सोचा- तरबूज तो कहीं भी मिल जाएगा। बादशाह को कुछ मूल्यवान चीज देनी चाहिए थी।
थोड़ी देर बाद एक और फकीर गाता हुआ बादशाह के पास से गुजरा। उसके बोल थे- मौला दिलवाए तो मिल जाए, मौला दिलवाए तो मिल जाए। आसफउद्दौला को अच्छा नहीं लगा। उसने फकीर को बेमन से दो आने दिए। फकीर ने दो आने लिए और झूमता हुआ चल दिया। दोनों फकीरों की रास्ते में भेंट हुई। उन्होंने एक दूसरे से पूछा, 'बादशाह ने क्या दिया?' पहले ने निराश स्वर में कहा,' सिर्फ यह तरबूज मिला है।' दूसरे ने खुश होकर बताया,' मुझे दो आने मिले हैं।' 'तुम ही फायदे में रहे भाई', पहले फकीर ने कहा।
दूसरा फकीर बोला, 'जो मौला ने दिया ठीक है।' पहले फकीर ने वह तरबूज दूसरे फकीर को दो आने में बेच दिया। दूसरा फकीर तरबूज लेकर बहुत खुश हुआ। वह खुशी-खुशी अपने ठिकाने पहुंचा। उसने तरबूज काटा तो उसकी आंखें फटी रह गईं। उसमें हीरे जवाहरात भरे थे। कुछ दिन बाद पहला फकीर फिर आसफउद्दौला से खैरात मांगने गया। बादशाह ने फकीर को पहचान लिया। वह बोला, 'तुम अब भी मांगते हो? उस दिन तरबूज दिया था वह कैसा निकला?' फकीर ने कहा, 'मैंने उसे दो आने में बेच दिया था।' बादशाह ने कहा, 'भले आदमी उसमें मैंने तुम्हारे लिए हीरे जवाहरात भरे थे, पर तुमने उसे बेच दिया। तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि तुम्हारे पास संतोष नहीं है। अगर तुमने संतोष करना सीखा होता तो तुम्हें वह सब कुछ मिल जाता जो तुमने सोचा भी नहीं था। लेकिन तुम्हें तरबूज से संतोष नहीं हुआ। तुम और की उम्मीद करने लगे। जबकि तुम्हारे बाद आने वाले फकीर को संतोष करने का पुरस्कार मिला।'

Friday, November 26, 2010

पर ये ना सोचना की तेरे लबों को हंसी ना दे सकेंगे

नहीं कहते तुझे हर पल खुशियाँ दे सकेंगे*****

कैसे कहें तेरी पलकों को नमी ना दे सकेंगे*****

ज़िन्दगी में सुख है गर तो दुःख भी आयेंगे*****

पर ये ना सोचना की तेरे लबों को हंसी ना दे सकेंगे*****

यूँ तो हर पल – हर घडी ये ज़िन्दगी कट रही है*****

मौत के आसमां से श्वांसों की घटा छट रही है*****

तुम संग होते तो, लगता के साहिल संग है, वरना*****

जीवन नदी बस कल-आज-कल में कल-कल बह रही है*****

नहीं कहते की इस जीवन नदी को कोई रुख ना दे सकेंगे*****

तुम बनके तो देखो सागर, फिर कैसे ना मिल सकेंगे*****

पर ये ना सोचना की तेरे लबों को हंसी ना दे सकेंगे*****

Saturday, November 13, 2010

मैं पहुँचकर शिखर पर अकेला पड़ गया हूँ माँ

वो प्यार भरी थपकी वो माथे पे चुम्बन तेरा
ऐ माँ अभी तेरी परछाईं मेरी आँखों में बाक़ी है।

वो हर रात सुनाना एक मीठी सी लोरी
उसकी मिठास अब भी मेरी सांसों में बाक़ी है।

वो तेरे होंठों की लम्स तेरे सांसों की खुशबू
ये एह्सास अब भी मेरी यादों में बाक़ी है।

मैं पहुँचकर शिखर पर अकेला पड़ गया हूँ
पर तेरी दुआओं का असर मेरी राहों में बाक़ी है।


ऐ “राज” अब दर्द पाकर मुझे एहसास होता है
तेरी ममता का वो दर्द मेरी आहों में बाक़ी है।


Friday, November 12, 2010

आज का विचार

> दूसरों में आदर्श ढूँढना वक्त की बर्बादी करना है।

>पैसे से खुशियाँ नहीं ख़रीदी जा सकती लेकिन वो बहुत सारी तक़लीफ़ों को कम कर देता है।

>अमीर होते हुए गरीबी का एहसास होना नामुमकिन है, लेकिन गरीब न होते हुए भी गरीबी का एहसास होना मुमकिन है।

>मुझे इस बात पर बहुत कम अफ़सोस हुआ कि मैं मौन क्‍यों रहा, लेकिन इस बात का कई बार अफ़सोस हुआ कि मैं बोला क्‍यों।

>ख़ुद को बदल लेना चाहिए, इससे पहले कि समय आपको बदले।

>गुस्‍से का मतलब है, दूसरों की गलती का अपने से बदला लेना।

>जो लोग सोचते नहीं हैं, वे शोचनीय हो जाते हैं।

>जो समय पर चल पड़ते हैं, उन्‍हें दौड़ना नहीं पड़ता।

>हारना उतना शर्मनाक नहीं होता जितना हार मान लेना।

>सीखने और मरने की कोई उम्र नहीं होती।

>जो लोग शर्तों पर शुरूआत करने की सोचते हैं, वे कभी कोई शुरूआत नहीं कर पाते।

>महत्‍वपूर्ण ये नहीं है कि आपके कितने मित्र हैं, महत्‍वपूर्ण ये है कि आप कितनों के मित्र हैं।

Thursday, November 11, 2010

मतलबी हैं लोग

सबको अपना माना तूने मगर ये न जाना…
मतलबी हैं लोग यहाँ पर मतलबी ज़माना
मतलबी हैं लोग यहाँ पर मतलबी ज़माना
सोचा साया साथ देगा निकला वो भी बेग़ाना
खुशियाँ चुरा के गुज़रे वो दिन
काँटे चुभा के बिछड़े वो दिन
बहते ही आंसू कहने लगे
बहते ही आंसू कहने लगे
ये क्या हुआ ये क्यूँ हुआ कैसे हुआ मैने न जाना
मतलबी हैं लोग यहाँ पर मतलबी ज़माना
आपनो में मैं बेग़ाना बेग़ाना
ज़िन्दा है लेकिन मुर्दा ज़मीं है
जीने के काबिल दुनिया नही है
दुनिया को ठोकर क्यूँ न लगा दूँ
खुद अपनी हस्ती क्यूँ ना मिटा दूँ
जी के यहाँ जी भर गया
दिल अब तौ मरने के ढूडे बहाना
मतलबी हैं लोग यह पर मतलबी ज़माना
सोचा साया साथ देगा निकला वो भी बेग़ाना

माता-पिता

भगवान के दो रूप निराले,
माता-पिता के नाम वाले।
माता-पिता की क्या बटाऊ महिमा,
इनके प्यार की कोई नही सीमा।
माता पिता है क्षमा की मूर्ति,
इनकी कमी की नही करसकता कोइ पूर्ति।
इन्होने की हमारे लिये अपनी खुशियाँ कुर्बन,
हमे ईश्वर के रूप में करना है इनका गुणगान।
अगर हम लैगे जन्म हज़ार,
तब भी नही चुका सकते इनका ऋण अपार।
जिनको मिल माता -पिता के रूप में भगवान,
संसार की खुशनसीब है वो सन्तान।

Friday, September 10, 2010

मेरे मन मंदिर में जो अस्थान तुम्हारा है

हमारी दुनिया बिल्कुल अलग है
तुम्हारा प्रति जो समर्पण की भावना है
वह इस दुनिया के लोगो सेबिल्कुल अलग है
मेरे मन मंदिर में जो अस्थान तुम्हारा है वह इस दुनिया के लोगो को नहीं
पतानहीं पता प्यार किया होता है
आपनापन कैसे बनता है
दुसरो के दिल में आपना अस्थान कैसे बनता है
यह दुनिया मतलबी होता जा रहा हैपर मै उन लोगो में नहीं हु
तुम मेरे लिए सदा एक आदर्श के रूप में
सदा मेरे जीवन में रहोगी
और शायद जीवन के बाद भी .........

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहोदर्द कैसा भी हो
आँख नाम ना करो ,
रात काली सही कोई गम ना करो,
इक सितारा बनो जगमगाते रहो ,
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो .

बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी,
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी,
दिल की गहराई में गम छुपाते रहो,
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो.

अश्क अनमोल हैं खो ना देना कहीं,
इन की हर बूँद है मोतियों से हसीं,
इनको हर आँख से तुम चुराते रहो,
ज़िन्दगी में सदा मुसकुरात रहो .

फासले कम करो दिल मिलते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो.

मेरा हर ख़ुशी तुम हो

जीवन एक पहेली है
कोई इसे हल कर दिया तो मुझे बताना
जीवन एक सागर है
कोई इसकी गहराई जान सको तो मुझे बताना
जीवन एक खुसबू है
इसकी महक अगर कोई पहचान सको तो मुझे बताना
जीवन एक दर्द है
इसकी मरहम अगर तुम्हारे पास है तो मुझे बताना
जीवन सूरज की वह तपिश है
अगर कही छाव नजर आये तो मुझे बताना
जीवन एक पूर्णिमा की ठंडी चांदनी है
क्यों की मेरे जीवन में तुम हो
जिसकी चांदनी से मेरा जीवन
एक सफल जीवन बन गया।
और जिसके जीवन में तुम रहोगी
उसे भला अपने जीवन से कोई
शिकायत थोरी भी नहीं होगी...........
जीवन का हर रहस्य
तुम पर आ कर ख़त्म हो जाता है
क्यों की
मेरे जीवन में तुम तो
मेरे जीवन का हर रहस्य तुम हो........
मेरा हर ख़ुशी तुम हो
मेरी जिंदिगी तुम तो तुम हो

मैं तुझसे प्यार करता हूं

हां मैं तुझसे प्यार करता हूं
जैसे हवाएं
सागर की लहरों से करती हैंजिन्हें उछालते हुए खुद को हीआकार देती हैं वो
और उसमें घुलती हैं थोडा-थोडाजैसे मेरी हंसी
तुम्हारी आंखों की चमक में घुलती है

हां मैं तुमसे प्यार करता हूं
जैस नदियां समंदर से करती हैंजिसमें जा मिलती हैं वो
बिना किसी शोर केखुद को अनस्तित्व करती हुई
उसकी असीमता को बल प्रदान करतीं

हां मैं तुमसे प्यार करता हूं
जैसे चांदनी इस धरती से करती हैजिसकी चोटियों को वह
उसी तरह सहलाती है
जैसे उसकी खाइयों को भरती हैअपनी ठंडी फिसलती रोशनी से
हां मैं तुझसे प्यार करता हूं
जैसे सुबहें और शामें करती हैं मुझसेजिनमें उगते हुए भू-दृश्यों में
चलती चली जाती हैं निगाहें
जैसी कि वेा डूबती चली जाती हैंतुम्हारी आंखों की छवि मे ...

प्यार जिदंगी का बहुत खूबसूरत खुशनुमा एहसास है

प्यार जिदंगी का बहुत खूबसूरत खुशनुमा एहसास है । प्यार की अनुभूति तो उसे ही हो सकती है जिसने कभी खुद प्यार जैसे खूबसूरत एहसास को महसूस किया हो या जिसने कभी प्यार किया हो । जो प्यार को महसूस करें या प्यार करें वे ही प्यार को लफ्जों में बाँध सकता है लफ्ज तो तब ही निकलेगें जब आप उसें महसूस करें । प्यार का हर रंग अलग है । प्यार हर रिश्ते से अलग अलग रुप में किया जाता है जैसे माँ अपने बेटे से ,पिता अपनी बेटी से ,भाई अपनी बहन से , बहन अपने भाई से बहन बहन से ,भाई भाई से करता है पति अपनी पत्नी से , पत्नी अपने पति से ,प्रेमी अपनी प्रेमिका से , प्रेमिका अपने प्रेमी से और हम खुद अपनेआप से प्यार करते है । प्यार का रिश्ता अपने आप में खूबसूरत है । प्यार हर रिश्ते को मजबूती देता है । इंसान के लिए प्यार करना बहुत ज़रुरी है क्योंकि वो तब ही इस रिश्ते की नजाकत को पहचानेगा । प्यार जैसे खूबसूरत एहसास को दुनिया की नजरें गल्त नजरों से देखती है जबकि पूरी दुनिया तो प्यार की नींव पर ही टिकी हुई है । हम अगर एक दूसरे से प्यार ना करे तो एक दूसरे को समझे और जाने कैसे । जब एक बच्चे को प्यार की ज़रुरत महसूस होती है तो वो अपनी माँ के पास जाता है । हर रिश्ते में प्यार एक अलग रुप में मिलता है । मैं ये नहीं कहती कि प्यार मत करो क्योकि प्यार तो हमारी जिदंगी का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है । मेरी नजर में प्यार करना कोई गल्त बात नहीं है प्यार कीजिए बशर्ते सही इंसान से । प्यार में जिदंगी खूबसूरत लगने लगती है ‘’ कहते है जब कोई प्यार करता है तो उसे दुनिया और दुनिया की हर की चीज खूबसूरत लगने लगती है और इंसान खुद खूबसूरत हो जाता है । ‘’ प्यार में बहुत सारे बदलाव आते है इंसान खुद इन बद्लावों को महसूस करता है । जो काम उसने कभी ना किये हो वो करने लगता है किसी काम में मन ना लगें किसी से ज्यादा बात करने का मन ना करें या ज्यादा करें । प्यार में इंसान के चेहरे पर एक अलग सी चमक और मुस्कान आ जाती है जो शायद पहले नहीं आई होगी । इस वक्त शायद इंसान को ज्यादा अकेलापन महसूस होगा । उसे एक दोस्त की ज़रुरत होगी जो उसकी बातों को समझे उससे बातें करे उसकी उलझनें सुलझाये । प्यार जैसे प्यारे प्यारे लम्हें हमारी जिदंगी के दरवाजे पर बार बार दस्तक नहीं देते है तो मैं अपने दिल से कहती हूँ कि इस लम्हे को खूबसूरती से जी लीजिये और इस रिश्ते को अपनी जिदंगी में इस कदर उतार लीजिये कि जिदंगी सारा खालीपन ही दूर हो जाये । क्योंकि ऐसे खूबसूरत और प्यारे लम्हे जिदंगी में बार बार नहीं आते है । हर चीज के आने और जाने का समय हमेशा एक जैसा नहीं होता है कोई चीज हमारी जिदंगी में कब चुपके से शामिल हो जाये और कब चली जाये इसका हम अंदाजा नही लगा सकते इसलिए उस समय से इतनी उम्मीदें ना रखे कि उससे आपकी उम्मीदें ही टूट जायें । आप ऐसे इंसान से प्यार करे जो आपके साथ हो आपके पास हो पर कभी कभी ऐसे नहीं होता है । अपनी आँखे बंदकर कर लें और उसे अपने दिल से याद कर महसूस करें तो उस व्यक्ति का आपको अपने आसपास होने का एहसास होगा । आपके दिल में ये एहसास कब जाग जायेंगा आपको खुद मालूम नहीं होगा । तो प्यार के प्यारे एहसास को महसूस कीजिये और दिल से अपनी जिदंगी को जी लीजिये । बुरी चीजों को दिमाग से बाहर के द्वार दिखायें और इस एहसास अपने दिल और दिमाग की राह दिखायें । मेरी जीने का तो यही फंडा है कि खुश रहों ,सदा मुस्कुराते रहो और अपने धैर्य को कभी मत खोने दो । मेरे लिए प्यार सब कुछ है मेरे लिए प्यार जैसे प्यारे शब्द में मेरी पूरी दुनिया सिमटी हुई है ।

Wednesday, September 1, 2010

माँ हर पल तुम साथ हो मेरे मुझ को यह एहसास

माँ हर पल तुम साथ हो मेरे, मुझ को यह एहसास

हैआज तू बहुत दूर है मुझसे, पर दिल के बहुत पास है।

तुम्हारी यादों की वह अमूल्य धरोहर

आज भी मेरे साथ है,ज़िंदगी की हर जंग को जीतने के लिए,

अपने सर पर मुझे महसूस होता आज भी तेरा हाथ है।

कैसे भूल सकती हूँ माँ मैं आपके हाथों का स्नेह,

जिन्होने डाला था मेरे मुंह में पहला निवाला,

लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में,

दुनिया की राहों में मेरा पहला क़दम था जो डाला

जाने अनजाने माफ़ किया था मेरी हर ग़लती को,

हर शरारत को हँस के भुलाया था,

दुनिया हो जाए चाहे कितनी पराई,

पर तुमने मुझे कभी नही किया पराया था,

दिल जब भी भटका जीवन के सेहरा में,

तेरे प्यार ने ही नयी राह को दिखाया था

ज़िंदगी जब भी उदास हो कर तन्हा हो आई,

माँ तेरे आँचल ने ही मुझे अपने में छिपाया था

आज नही हो तुम जिस्म से साथ मेरे,पर अपनी बातो से ,

अपनी अमूल्य यादो सेतुम हर पल आज भी मेरे साथ हो..........

क्योंकि माँ कभी ख़त्म नही होती .........

तुम तो आज भी हर पल मेरे ही पास हो.........

Tuesday, August 31, 2010

माँ

मै रोया यहां दूर देस वहां भीग गया तेरा आंचल
तू रात को सोती उठ बैठी हुई तेरे दिल में हलचल
जो इतनी दूर चला आया ये कैसा प्यार तेरा है मां
सब ग़म ऐसे दूर हुए तेरा सर पर हाथ फिरा है मां
जीवन का कैसा खेल है ये मां तुझसे दूर हुआ हूं मै
वक़्त के हाथों की कठपुतली कैसा मजबूर हुआ हूं मै
जब भी मै तन्हा होता हूँ, मां तुझको गले लगाना है
भीड़ बहुत है दुनिया में तेरी बाहों में आना है
जब भी मै ठोकर खाता था मां तूने मुझे उठाया है
थक कर हार नहीं मानूं ये तूने ही समझाया है
मै आज जहां भी पहुंचा हूँ मां तेरे प्यार की शक्ति है
पर पहुंचा मै कितना दूर तू मेरी राहें तकती है
छोती छोटी बातों पर मां मुझको ध्यान तू करती है
चौखट की हर आहट पर मुझको पहचान तू करती है
कैसे बंधन में जकड़ा हूँ दो-चार दिनों आ पाता हूँ
बस देखती रहती है मुझको आँखों में नहीं समाता हूँ
तू चाहती है मुझको रोके मुझे सदा पास रखे अपने
पर भेजती है तू ये कह के जा पूरे कर अपने सपने
अपने सपने भूल के मां तू मेरे सपने जीती है
होठों से मुस्काती है दूरी के आंसू पीती है
बस एक बार तू कह दे मां मै पास तेरे रुक जाऊंगा
गोद में तेरी सर होगा मै वापस कभी ना जाऊंगा

Saturday, August 28, 2010

चिंता नहीं चिंतन की है महत्ता

जीवन में आगे बढ़ने के लिए चिंतन बहुत जरूरी है। चिंतनशील मस्तिष्क प्रगतिशील मनुष्य की निशानी है। आप चिंतन के जरिए ही अपनी खूबियों और खामियों के बारे में गहराई से जानते हुए जीवन में आगे बढ़ने की राह प्रशस्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि विभिन्न स्थितियों में चिंतन की क्या महत्ता है।
सफलता की स्थिति में : सफलता की स्थिति में चिंतन करना इसलिए अनिवार्य होता है कि आप इसके जरिए यह जान सकते हैं कि आपने कामयाबी को हासिल करने के लिए किन चीजों का सहारा लिया, आपके ताकतवर पक्ष कौन से रहे, आगे के सफर में कामयाबी के लिए और किस रास्ते का अनुसरण किया जाए इत्यादि-इत्यादि। असफलता की अपेक्षा सफलता की स्थिति में अपने चिंतन को सतत जारी रखना और ज्यादा जरूरी हो जाता है। सफलता पाना जितना मुश्किल है, उसे बनाए रखना और आगे के सफर में कामयाब होना उससे भी ज्यादा मुश्किल।
असफलता की स्थिति में: आप चाहे कारोबार में हों, अध्ययन कर रहे हों या अपने परिवार की ही किसी समस्या के निराकरण में आपको असफलता हाथ लगी हो; ऐसे मामलों में भी चिंतन बहुत जरूरी है, ताकि आगे उस असफलता को आप न दोहरा सकें। असफलता के दौरान आपने क्या गलतियां की, आपके वीक पॉइंट्स क्या रहे, प्रतिद्वंद्वी को आगे बढ़ने के लिए आपने कहां स्पेस दिया, समस्या को और ज्यादा बढ़ने के लिए जिम्मेदार तत्व क्या रहे इत्यादि बातों पर चिंतन करना श्रेयस्कर रहता है।
मध्य की स्थिति: मध्य की स्थिति उसे कहा जाएगा, जब आप अपने मिशन की शुरुआत करने जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में आपका चिंतन इस तरह का होना चाहिए।
आप अपने काम को किस तरह से अंजाम दे सकते हैं। इस काम के लिए आपको किन संसाधनों की आवश्यकता होगी।आपके कमजोर पक्ष क्या हैं और उन्हें पहले ही किस तरह मजबूत कर लिया जाए।यदि अमुक प्रकार की कोई समस्या आड़े आ गई तो आप उससे कैसे बाहर निकलेंगे आदि-आदि।चिंतन एकांत में करें और छोटी-छोटी चीजों से इसकी शुरुआत करें। याद रखें दुनिया में जितनी भी महान हस्तियां हैं, उन्होंने चिंता से नहीं वरन् चिंतन से उपलब्धियां हासिल की है। अत: चिंतनशील बनें।

Friday, August 13, 2010

अनमोल वचन

1. हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है.
2. यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते.
3. अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है.
4 .वही सबसे तेज चलता है, जो अकेला चलता है।
5. प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है।
6. ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।
7. एकाग्रता से ही विजय मिलती है।
8. कीर्ति वीरोचित कार्यो की सुगन्ध है।
9. भाग्य साहसी का साथ देता है।
10. सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है।
11. विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है।
12. कार्य उद्यम से सिद्ध होते है, मनोरथो से नही।
13. संकल्प ही मनुष्य का बल है।
14. प्रचंड वायु मे भी पहाड विचलित नही होते।
15. कर्म करने मे ही अधिकार है, फल मे नही।
16. मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
17. अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता।
18. मुस्कान प्रेम की भाषा है।
19. सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
20. अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता।
21. प्रसन्नता स्वास्थ्य देती है, विषाद रोग देते है।
22. प्रसन्न करने का उपाय है, स्वयं प्रसन्न रहना।
23. अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नही होता।
24. एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।
25. दूसरो से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।
26. समय महान चिकित्सक है।
27. समय किसी की प्रतीक्षा नही करता।
27. हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है।
28. एक झूठ छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते है।
29. प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते है।
30. बिना गुरु के ज्ञान नही होता। 31. आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है।
32. जिग्यासा के बिना ज्ञान नही होता।
33. बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है।
34 अल्प ज्ञान खतरनाक होता है।
35. कर्म सरल है, विचार कठिन।
36. उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
37. धन अपना पराया नही देखता।
38. जैसा अन्न, वैसा मन।
39. अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है।
40. बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नही है।
41. अन्याय मे सहयोग देना, अन्याय के ही समान है।
42. विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है।

Monday, August 9, 2010

ये जीवन है, इस जीवन का

ये जीवन है, इस जीवन का यही है - यही है - यही है रंगरूप थोड़े गम हैं, थोडी खुशियाँ यही है - यही है - यही है छाओं धूप ये जीवन है...ये न सोचो इसमे अपनी हार है के जीत है इसे अपना लो जो भी जीवन की रीत है ये जिद छोड़ो, बन्धन यूं न तोड़ो हर पल एक दर्पण है ये जीवन है...धन से न दुनिया से, घर से न द्वार से सासों की डोर बंधी है, प्रीतम के प्यार से दुनिया छूटे, पर न टूटे, ये ऐसा बन्धन है ये जीवन है...ये जीवन है, इस जीवन का यही है - यही है - यही है रंगरूप थोड़े गम हैं, थोडी खुशियाँ यही है - यही है - यही है छाओं धूप ये जीवन है...

आपके अंदर क्या हैं?

एक अजनबी किसी गांव में पहुंचा। उसने उस गांव के बाहर बैठे एक बूढ़े आदमी से पूछा क्या इस गांव के लोग अच्छे व दोस्ती करने वाले हैं। उस बूढ़े आदमी ने सीधे उसके प्रश्न का उतर देने के बजाय उसी से पूछ लिया कि बेटा तुम जहां से आए हो वहां के लोग कैसे? वह अजनबी गुस्से से बोला बहुत बुरे, पापी और अन्यायी। सारी परेशानियों के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। बूढ़ा थोड़ी देर सोचता रहा और बोला यहां के लोग भी वैसे ही हैं, तुम इन्हें भी वैसा ही पाओगे। वह व्यक्ति जा भी नहीं पाया था कि एक दूसरे व्यक्ति ने आकर वही प्रश्न दोहराया तो वृद्ध ने उससे भी वही प्रश्न किया कि बेटा तुम बताओ जहां से तुम आए हो वहां के लोग कैसे हैं? उस व्यक्ति की आंखें आंसुओं से भर गईं और वह बोला बहुत प्यार करने वाले, दयालु, मेरी सारी खुशी का कारण वे लोग ही थे। वह वृद्ध बोला यहां के लोग भी ऐसे ही हैं, तुम यहां के लोगों को भी कम दयालु नहीं पाओगे। मनुष्य-मनुष्य में भेद नहीं है। संसार दर्पण है जो हम दूसरो में देखते है वह अपनी ही प्रतिक्रिया है। जब तक सभी में शिव व सुन्दर दिखाई न देने लगे, तब तक यही सोचना चाहिये कि स्वयं में ही कोई खोट है।लाइफ का फंडा- जो खुद मे ही नहीं है उसे दूसरों में खोजना असंभव है। जो जैसा होता है उसे दूसरे भी वैसे ही नजर आते हैं। सुन्दर को खोजने के लिए सारी धरती भटक लें पर जो खुद के अंदर ही नहीं है, उसे कहीं भी पाना असंभव है।

हृदय कभी नहीं भरता

एक महल के द्वार पर भीड़ लगी थी। किसी फकीर ने राजा से भीख मांगी थी। राजा ने उससे कहा था जो भी चाहते हो मांग लो। वह राजा जो भी सुबह सबसे पहले उससे भीख मांगता था वह उसे इच्छित वस्तु देता था। उस दिन वह भिखारी सबसे पहले राजा के महल पहुंचा था। फकीर ने राजा के आगे अपना छोटा सा पात्र बढ़ाया और बोला इसे सोने की मुद्राओं से भर दो। राजा ने उसके पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली तो उसे पता चला की वह पात्र जादुई है। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गई वह उतना अधिक खाली होता गया। फकीर बोला नहीं भर सकें तो वैसा बोल दे मैं खाली पात्र लेकर चला जाउंगा। ज्यादा से ज्यादा लोग यही कहेंगे कि राजा अपना वचन पूरा नहीं कर सका। राजा ने अपना सारा खजाने खाली कर दियें,लेकिन खाली पात्र खाली ही था। उसके पास जो कुछ था, सब उस पात्र में डाल दिया गया लेकिन वह पात्र न भरा तो न भरा। तब राजा ने पूछा भिक्षु तुम्हारा पात्र साधारण नहीं है। इसे भरना मेरे बस की बात नहीं हैं। क्या मैं पूछ सकता हुं कि इस पात्र का रहस्य क्या है? कोई विशेष रहस्य नहीं है यह इंसान के हृदय से बना है। क्या आपको पता नहीं है कि मनुष्य का हृदय कभी नहीं भरता धन से, पद से, ज्ञान से, किसी से भी नहीं, किसी से भी भरो वह खाली ही रहेगा। क्योंकि वह इन चीजों से भरने के लिए बना ही नहीं है। इस सत्य को न जानने के कारण ही इंसान जितना पाता है उतना ही दरिद्र होता जाता है। इंसान का हृदय कुछ भी पाकर शांत नहीं होता क्यों? क्योंकि हृदय परमात्मा को पाने के लिए बना है।

Tuesday, August 3, 2010

तीन बातें

मैं उंगलियों पर गिनी जा सकें, इतनी बातें कहता हूं:1. मन को जानना है, जो इतना निकट है, फिर भी इतना अज्ञात है।2. मन को बदलना है, जो इतना हठी है, पर परिवर्तित होने को इतना आतुर है।3. मन को मुक्त करना है, जो पूरा बंधन में है, किंतु 'अभी और यहीं' मुक्त हो सकता है।ये तीन बातें भी कहने की हैं, करना तो केवल एक ही काम है। वह है : मन को जानना। शेष दो उस एक के होने पर अपने आप हो जाती हैं। ज्ञान ही बदलाहट है, ज्ञान ही मुक्ति है।यह कल कहता था कि किसी ने पूछा, 'यह जानना कैसे हो?'यह जानना-जागने से होता है। शरीर और मन दोनों की हमारी क्रियाएं मू‌िर्च्छत हैं। प्रत्येक क्रिया के पीछे जागना आवश्यक है। मैं चल रहा हूं, मैं बैठा हूं या में लेटा हूं, इसके प्रति सम्यक स्मरण चाहिए। मैं बैठना चाहता हूं, इस मनोभाव या इच्छा के प्रति भी जागना है। चित्त पर क्रोध है या क्रोध नहीं है, इस स्थिति को भी देखना है। विचार चल रहे हैं या नहीं चल रहे हैं, उनके प्रति भी साक्षी होना है।यह जागरण दमन से या संघर्ष से नहीं हो सकता है। कोई निर्णय नहीं लेना है। सद्-असद् के बीच कोई चुनाव नहीं करना है। केवल जागना है- बस जागना है। और जागते ही मन का रहस्य खुल जाता है। मन जान लिया जाता है। और केवल जानने से परिवर्तन हो जाता है। और परिपूर्ण जानने से मुक्ति हो जाती है।इससे मैं कहता हूं कि मन की बीमारी से मुक्ति आसान है, क्योंकि यहां निदान ही उपचार है।(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

मनुष्य के साथ क्या हो गया है?

मैं सुबह उठता हूं। देखता हूं, गिलहरियों को दौड़ते, देखता हूं, सूरज की किरणों में फूलों को खिलते, देखता हूं, संगीत से भरी प्रकृति को। रात्रि सोता हूं। देखता हूं, तारों से झरते मौन को, देखता हूं, सारी सृष्टिं पर छा गयी आनंद-निंद्रा को। और फिर, अपने से पूछने लगता हूं कि मनुष्य को क्या हो गया है?सब कुछ आनंद से तरंगित है, केवल मनुष्य को छोड़कर। सब कुछ आनंद से आन्दोलित है, केवल मनुष्य को छोड़ कर। सब दिव्य शांति में विराजमान है, केवल मनुष्य को छोड़ कर।क्या मनुष्य इस सब का भागीदार नहीं है? क्या मनुष्य कुछ पराया है? अजनबी है?पर परायापन अपने हाथों लाया गया है। यह टूट अपने हाथों पैदा की गई है। स्मरण आती है, बाइबिल की पुरानी कथा। मनुष्य 'ज्ञान का फल' खाकर आनंद के राज्य से बहिष्कृत हो गया है। यह कथा कितनी सत्य है। ज्ञान ने, बुद्धि ने, मन ने मनुष्य को जीवन से तोड़ दिया है। वह सत्ता में हो कर सत्ता से बाहर हो गया है।ज्ञान को छोड़ते ही, मन से पीछे हटते ही, एक ये लोक का उदय होता है। उसमें हम प्रकृति से एक हो जाते हैं। कुछ अलग नहीं होता है, कुछ भिन्न नहीं होता है। सब एक शांति में स्पंदित होने लगता है।यह अनुभूति ही 'ईश्वर' है।ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है। ईश्वर की कोई अनुभूति नहीं होती है, वरन् एक अनुभूति का नाम ही ईश्वर है। 'उसका' कोई साक्षात नहीं है, वरन् एक साक्षात का ही वह नाम है।इस साक्षात में मनुष्य स्वस्थ हो जाता है। इस अनुभूति में वह अपने 'घर' आ जाता है। इस प्रकाश में वह फूलों और पत्तियों के सहज-स्फूर्त आनंद का साझीदार होता है। इस एक ओर से वह मिट जाता है और दूसरी ओर सत्ता को पा लेता है। यह उसकी मृत्यु भी है और उसका जीवन भी है।(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

Saturday, July 17, 2010

मौत से इंसान डरता क्यों है?

दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य ही यह है कि मनुष्य अपनी मृत्यु को भूला रहता है। एक दिन अचानक मौत को सामने देखकर इंसान को बड़ी तकलीफ होती है। मौत को भूले रहना और उससे घबराना दोनों ही मनुष्य की अज्ञानाता यानि नासमझी का परिणाम है। जबकि मृत्यु कभी न भुलाने वाला सुन्दर और अनिवार्य सच है। आइये देखते हैं कि मौत हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है:--इंसान व अन्य सभी जीवों का स्थूल शरीर मात्र पैकिंग हैं और उसमें रहने वाला सूक्ष्म शरीर यानि कि आत्मा उस पैकिंग में छुपी हुई बहुमूल्य निधि है। - किसी भी अति प्रिय मनुष्य, वस्तु, पशु-पक्षी आदि के बिछुडऩे पर अथाह वेदना यानि कि कष्ट होता है जबकि एसा होना तो निश्चित ही था। ऐसा हर जन्म में कई बार हो चुका है। - अपनी असली पहचान यानि कि आत्मज्ञान न होने के कारण ही संसारिक मनुष्य अपनी मृत्यु से अथाह भयभीत होता है।- शरीर छोड़ते हुए जीव करूण रुदन करता है। मार्मिक दृष्टि से देखता है, कि कोई उसे मृत्यु से बचा ले,किंतु जो स्वयं को ही नहीं बचा पायेगा,उसे कैसे बचा लेगा?- यदि किसी को पूर्व जन्म याद रह जाए तो प्रारम्भ में कष्ट होता है किंतु बाद में वह शरीर यानि कि पैकिंग के अनुसार ढल जाता है और उसके अनुसार ही जीवन जीने लगता है।- मौत के बाद की यात्रा में कोई भी जीव या वस्तु साथ नहीं जाती है और न ही मृत्यु से बचा सकती है।

Wednesday, July 14, 2010

अमीर बनना होगा आसान यदि आप धार्मिक बनें

दुनिया की सारी सर्वे रिपोर्टें एक बात पर पूरी तरह एकमत हैं। वो यह कि दुनिया भर में सर्वाधिक धार्मिक लोग कहीं पाए जाते हैं तो वह भारत देश ही है। एक दूसरा सर्वे यह प्रकाशित करता है कि, दूसरे देशों में जाकर सफल-संपन्न बनने वालों में भारतीय ही नम्बर-१ पर हैं। इन दोनों सर्वे रिपोर्टों को मिलाकर देखने पर एक बड़ा ही कीमती सूत्र निकलकर आता है। यह अनमोल सूत्र साबित करता है कि किसी भी क्षेत्र में सफल-संपन्न होने वालों में धार्मिक और नैतिक लोगों का ही अनुपात सर्वाधिक है। सत्य है कि धर्म के ऊंचे सिद्धांतों में सादगी और संतोष को बहुत महत्व दिया गया है, किन्तु सादगी का अर्थ गरीब रहना नहीं बल्कि अपार धन-संपत्ति का धैर्य से पचाना है। धन वर्जित नहीं बल्कि धन का नशा वर्जित होता है।लक्ष्मी का मतलब होता है धन-सम्पत्ति, वैभव या समृद्धि। कहते हैं कि जीवन है तो जगत है और जगत है तो जरूरतें भी होंगी। किसी पारिवारिक या गृहस्थ इंसान के लिये लक्ष्मी कृपा यानि धन-सम्पत्ति का होना अत्यंत ही आवश्यक माना जाता है। दरिद्रता को जीवन का अभिशाप माना गया है। यहां तक कि गरीब रहना पाप करने के समान निंदनीय कार्य माना गया है। अत: इस दरिद्रता के अभिशाप से छुटकारा पाने और बरीबी के कलंक को मिटाने के लिये धार्मिक नियमों को अपने जीवन में शामिल करने के साथ-साथ, नीचे दिये गए कुछ प्रबल प्रभावशाली उपायों का प्रयोग अवश्य करें :-१. धन के अधिपति कुबेर देव प्रसन्न होंगे यदि इंसान धर्म का पालन करेगा और ईमानदारी का जीवन जीएगा।२. कुबेर देव प्रसन्न होंगे यदि इंसान कठिनाई आने पर भी सत्य के मार्ग से नहीं हटेगा।३. कुबेर देव प्रसन्न होंगे यदि इंसान इन्द्रिय भोगों पर नियंत्रण रखते हुए सादगी व पवित्रता का जीवन जीएगा।४. धन के अधिपति कुबेर देव प्रसन्न होंगे यदि इंसान अपने खून पसीने की कमाई का कुछ भाग, भगवान की बनाई इस दुनिया को और भी सुन्दर बनाने में खर्च करेगा।५. यदि इंसान अपने कर्तव्य को पूरी तत्परता से पूरा करेगा और उसके परिणाम को भगवान की मरजी समझ कर स्वीकार करेगा।

Bharat Mata

Bharat Mata, that is, the Mother India (Bharat - India, Mata - Mother) is a personification of India, and relatively seen by some as a mother goddess of fertility. She is usually depicted as a lady, clad in a saree holding a flag.
Ratnakaradhautapadam Himalyakirtitinim I
Brahmarajarsiratnamdhyam vande Bharatamataram II
Meaning :
I pay my obeisance to mother Bharat, whose feet are being a washed by the ocean, who wears the mighty Himalaya as her crown, and who is exuberantly adorned with the gems of traditions set by Brahmarsis and Rajarsis.

Tuesday, July 13, 2010

दुख अपने और पराए की पहचान कराता है

दुख कहां से आता है? यह कोई नहीं बता सकता, क्योंकि दुख आने के असंख्य कारण है। दुख..., दर्द..., परेशानियां..., समस्याएं..., प्रॉब्लम्स इन शब्दों से आज कोई अछूता नहीं है। यह भी सच्चाई है कि सुख को जाने से रोका नहीं जा सकता और दुख को आने से। हर धर्म में सुख-दुख जीवन का मूल आधार बताए गए हैं। ये एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। सुख-दुख के संबंध में गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है 'धीरज, धर्म, मित्र, अरु नारी, आपतकाल परखिए चारी।' यानी संकट के समय ही धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा होती है। सुख में तो सभी साथ देते हैं। सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र के दुख को देखकर दुखी होता है तथा उसके दुख दूर करने का हर तरह से प्रयास करता है। उसे हर तरह का सहयोग करता है। उसके अवगुणों को छिपाकर गुणों का बखान करता है।कवि दुष्यंत कुमार ने एक कविता में कहा है- दुख को बहुत सहेज कर रखना पडा हमें, सुख तो किसी कपूर की टिकिया सा उड़ गया।अर्थात् सुख कपूर की तरह है जो आग लगते ही तेजी से भभक कर जल उठता है और फिर बुझ जाता है। हालांकि उसकी स्मृति लंबे समय तक बनी रहती है।देखा जाए तो दुख ही हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। दुख ही हमें सही-गलत में फर्क सीखता है। जीवन की सच्चाई हमारे सामने लेकर आता है लेकिन हम उसे समझ नहीं पाते। जिस तरह हम सुख उत्साह के साथ अपनाते हैं उसी तरह दुख का भी प्रसन्नता से स्वागत किया जाना चाहिए। हां, यह काम मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। हमारी मानसिकता बन चुकी है कि हम सिर्फ सुख चाहते है और दुख से बचने का प्रयास करते हैं। किंतु सच्चाई यही है कि दुख से ही हमारे आत्मबल, धैर्य, विवेक और जीवटता की असली परीक्षा होती है। दुख से ही हमें अपने और पराए की पहचान होती है। हमें आत्मनिरीक्षण और गलतियों को दूर करने का महत्वपूर्ण सबक मिलता है।अंतत: यही कहा जा सकता है कि सुख-दुख तो आते रहेंगे। समझदारी इसी में सुख से ज्यादा मोह ना करें और दुख का स्वागत करें। दुख से बचने का कोई रास्ता नहीं है, लेकिन हां भगवान की भक्ति से उसका प्रभाव कम जरूर किया जा सकता है।

सिर्फ अहंकार ही व्यर्थ होता है

नारद पुराण की इस कथा में निरभिमानता का महत्व दर्शाया गया है। एक ऋषि थे- सर्वथा सहज, निराभिमानी, वैरागी और परम ज्ञानी। दूर-दूर से लोग उनके पास ज्ञानार्जन के लिए आते थे। एक दिन एक युवक ने आकर उनके समक्ष शिष्य बनने की इच्छा प्रकट की। ऋषि ने सहमति दे दी। युवक, ऋषि के पास रहने लगा। वह ऋषि की शिक्षा को पूर्ण मनोयोग से ग्रहण करता। एक दिन ऋषि ने कहा-जाओ, वत्स। तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हुई। अब तुम इसका उपयोग कर दूसरों का जीवन बेहतर बनाओ। युवक ने उन्हें गुरुदक्षिणा देना चाही, तो ऋषि बोले-यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो वह चीज लेकर आओ जो बिल्कुल व्यर्थ हो।युवक व्यर्थ चीज की खोज में चल पड़ा। उसने चलते-चलते सोचा कि मिट्टी ही सबसे व्यर्थ हो सकती है। यह सोचकर उसने मिट्टी को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह बोल उठी-तुम मुझे व्यर्थ समझते हो? धरती का सारा वैभव मेरे गर्भ से ही प्रकट होता है। ये विविध रूप, रस, गंध क्या मुझसे उत्पन्न नहीं होते? युवक मिट्टी छोड़कर आगे बढ़ा, तो उसे गंदगी का ढेर दिखाई दिया। उसने गंदगी की ओर हाथ बढ़ाया तो उसमें से आवाज आई-क्या मुझसे बेहतर खाद धरती पर और कहीं मिलेगी? सारी फसलें मुझसे ही पोषण पाती है, फिर मैं कैसे व्यर्थ हो सकती हूं। युवक सोचने लगा कि वस्तुत: सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ अपने आप में उपयोगी है। व्यर्थ और तुच्छ तो वह है जो दूसरों को व्यर्थ व तुच्छ समझता है और वह अहंकार के सिवाय और क्या हो सकता है। वह तत्काल ऋषि के पास जाकर बोला कि वह गुरुदक्षिणा में अपना अहंकार देने आया है। यह सुनकर ऋषि बोले-ठीक समझे वत्स। अहंकार के विसर्जन से ही विद्या सार्थक व फलवती होती है।कथा का सार है कि दुनिया में व्यर्थ सिर्फ अहंकार ही होता है। जो कुछ देने के स्थान पर है , उसे भी नष्ट कर देता है। इससे सदैव बचना चाहिए।

पूर्ण सुखी बनने के तीन रास्ते

सफलता की गयारंटी हैं ये नौ गुण..... कहावत तो यह है कि इस कलियुग में कोई भी पूर्ण सुखी नहीं है, किन्तु इस बात से यह सिद्ध नहीं हो जाता कि ऐसा होना संभव ही नहीं है। सारी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ इंसानों ने पूर्ण सुख का सुनिश्चित मार्ग खोज निकाला है। इंसान के पूर्ण सुखी होने के उस राज मार्ग का नाम है- अध्यात्म। अध्यात्म के अनुसार जीवन की प्रमुख दिशाएं तीन होती हैं (1) आत्मिक (2) बौद्धिक, (3) सांसारिक। इन तीनों दिशाओं में आत्म-बल बढऩे से आनन्दायक परिणाम प्राप्त होते हैं । इन तीनों दिशाओं में तीन-तीन लक्षण ऐसे दिखाई पड़ते हैं जिनसे जीवन सर्व सुखी बन जाता है। इन नौ सम्पदाओं को नव निधि भी कह सकते हैं। सिद्धियां देवताओं को प्राप्त होती हैं, ऋद्धियां असुरों को मिलती हैं और निधियां मनु की सन्तान मानव प्राणी को यानि कि हम इंसानों को प्राप्त होती हैं।
आत्मिक क्षेत्र की तीन निधियां (1) विवेक, (2) पवित्रता (3)शान्ति हैं। बौद्धिक क्षेत्र की और सांसारिक क्षेत्र की तीन निधियां (1) साहस, (2) स्थिरता, (3) कर्तव्यनिष्ठा हैं और सांसारिक क्षेत्र की तीन निधियां (1) स्वास्थ्य,(2) समृद्धि,(3) सहयोग हैं। यह नौ लक्षण जीवन की सफ लता के आधार स्तंभ हैं। इन्हीं नौ गुणों को ब्राह्मण के नव गुण बताया है। भगवान् रामचन्द्रजी ने धनुष तोडऩे पर क्रोधित परशुराम जी से उनके नव गुणों की प्रशंसा करके उन्हें प्रसन्न किया था।

Monday, July 12, 2010

धन आए तो मन को जरूर संभाल लें

आजकल धन कमाना आसान है लेकिन उसका सही निवेश मुश्किल। अधिकतर लोगों के साथ होता यह है कि वे धन तो खुब कमा लेते हैं लेकिन उसका सही विनियोजन नहीं कर पाते, नतीजतन वे फिर से धन खो देते हैं। जब धन आए तो अपने मन-बुद्धि को जागृत कर लें। अन्यथा सारा पुरुषार्थ निष्फल रह जाएगा। धन कमाने में जितनी अक्ल लगती है उससे ज्यादा इसके निवेश और बचत में बुद्धि लगाना पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि धन के व्यावहारिक पक्ष पर तो आजकल सभी समझदार हो गए हैं। इस समय तो ऐसा माना जाता है कि इस दौर में तो बच्च पैदा होते समय ही धन-दौलत के मामले में सिखा-सिखाया आता है। लेकिन यदि धन का आध्यात्मिक पक्ष नहीं समझा गया तो ये धन सुख से अधिक दुख का कारण बन जाता है। अमीरी और दौलत अपने साथ प्रदर्शन और दिखावे की आदत लेकर आती है। यहीं से जीवन में आलस्य और अपव्यय का आरंभ भी हो जाता है। र्दुव्‍यसन दूर खड़े होकर इन दोनों बातों की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं कि कब आदमी आलस्य, अपव्यय के गहने पहने और हम प्रवेश कर जाएं।जब जीवन में बाहर से धन आ रहा हो तो समय रहते हम भीतर के धन की पहचान कर लें। जब हम धन के बाहरी इन्तजाम जुटा रहे हों उसी समय मन की भीतरी व्यवस्थाओं के प्रति सजग हो जाएं। मन की चार अवस्था मानी गई है। स्वप्न, सुषुप्ति, जागृत और तुरीय। इनमें तुरीय अवस्था यानी हमारे भीतर किसी साक्षी का उपस्थित होना। हम हैं इसका होश रहना। बहुत गहरे में हम पाते हैं कि चाहे हम सो रहे हों या जागते हुए कोई काम कर रहे हैं, हमारे भीतर कोई होता है जो इन स्थितियों से अलग होकर हमें देख रहा होता है। थोड़ा होश और अभ्यास से देखें तो हमें पता लग जाता है कि यह साक्षी हम ही हैं। इसे ही हमारा होना कहते हैं। धन के मामले में जितने हम तुरीय अवस्था के निकट हैं उतने ही प्रदर्शन, अपव्यय, आलस्य, दुगरुणों से दूर रह पाएंगे। यह धन का निजी प्रबंधन है तथा तब दौलत आपको सुख के साथ शान्ति भी देगी।

पैसा नीति से कमाएं, रीति से खर्च करें

कहते हैं जिस नीति से धन कमाया जाता है उस धन की गति भी वैसी ही होती है। अनैतिक कार्यो से कमाया गया धन हमेशा पीड़ा देता है, मानसिक त्रास देता है और अंत में वह भी ऐसे कामों में खर्च होता है, जो अनावश्यक होते हैं। धन अच्छे कर्मो से कमाया जाए और सही जगह निवेश किया जाए तो ही वह फल देता है। इसी में लक्ष्मी का वास भी माना गया है। आज पुरुषार्थ का 90 प्रतिशत भाग धन कमाने में लग गया है। सारे प्रयास धन के पीछे हैं। आदमी को धनवान भी होना है और भगवान भी मिलना है। दोनों की चाहत समानांतर चलती है। पैसा और परमात्मा एक साथ मिले इस मणिकांचन योग के लिए पूरी जिंदगी कई लोगों ने दांव पर लगा दी। शास्त्र कहते हैं न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं। वह जैसा चाहती है वैसा नचाती है। वेदव्यास में लक्ष्मी के सात साधन बताए हैं-धर्य धारण करना, क्रोध न करना, इन्द्रियों को वश में रखना, पवित्रता, दया, सरल वचन और मित्रों से द्वेष न रखना।कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि धन न कमाया जाए। भगवान को हमारी निर्धनता से अधिक हमारी वैराग्य वृत्ति प्रिय है। बड़े से बड़ा धनवान बैरागी हो सकता है और गरीब से गरीब के भीतर भी इस वृत्ति का अभाव हो सकता है। अत: धन कमाना बुरा नहीं है, आप किस तरह से कमा रहे हैं और धन अर्जन के कृत्य को किस प्रकार पूरा कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है। परिणाम उसी में छिपा है। धन दुख नहीं देता और न ही सुख बरसाता है। उसके तरीके का सारा खेल है। जैन धर्म में महावीर स्वामी ने एक सूत्र कहा है- कर्म, कर्ता का ही अनुगमन करते हैं। जो व्यक्ति जिस तरह से धन कमा रहा है, परिणाम उसे ही भुगतना है। उस धन से जो दूसरे लाभ ले रहे हैं उन्हें उसका परिणाम वैसा नहीं भुगतना होगा। महावीर का सूत्र है-न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ, न मित्त वग्गा न सुया न बंधवा। एक्को सयं पच्चणु होई दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं।। जाति, मित्र, संतानें इस दुख का विभाजन नहीं कर सकते। ऐसा दुख अकेले ही भुगतना पड़ता है। इसलिए नीति से कमाएं और रीति से खर्च करें। क्योंकि जिम्मेदारी आपकी अकेले की होगी।

किसी की मौत कितनी करीब है?

मौत, मृत्यु, देहांत, डेथ आदि ऐसे शब्द जिसे सुनते ही बड़े-बड़े विद्वान और पराक्रमी लोगों के भी पसीने छूट जाते है। सामान्यत: सभी के मन में कौतुहल रहता है कि हमारी मृत्यु कब और कैसे होगी?जब किसी की मृत्यु करीब आती है तो उस व्यक्ति का स्वभाव, हाव-भाव सब बदल जाते हैं। वह हर कार्य अजीब ढंग से करता है। उस व्यक्ति का व्यक्तित्व ही बदल जाता है।हमारे धर्म ग्रंथों और ज्योतिष शास्त्र के कुछ बिंदू यहां दिए जा रहे हैं जिससे किसी व्यक्ति की मृत्यु में कितने दिन शेष हैं, अंदाजा लगाया जा सकता है-- यदि किसी व्यक्ति का पेट सांस लेते समय बिल्कुल ना हिलें तो समझ लें कि उसकी आयु कुछ ही घंटे शेष है।- यदि व्यक्ति की आंखें पथरा जाएं, आंखों में कोई हलचल ना हो, तब उसका जीवन कुछ ही घंटों का शेष होता है।- यदि किसी व्यक्ति को आइने में अपना अक्स दिखाई देना बंद हो जाए तो उसकी आयु करीब 1 दिन और शेष है।- जब किसी व्यक्ति को रात के समय ध्रुव तारा दिखाई न दें तो समझ लें कि उसकी आयु करीब 40 दिन शेष हैं।- जब किसी व्यक्ति को पानी, घी, तेल में स्वयं की परछाई दिखाई देना बंद हो जाए तो उस व्यक्ति की आयु करीब 7 दिनों की शेष है।- जब किसी व्यक्ति का स्वभाव पूरी तरह बदल जाए, उसकी सभी हरकतें, हाव-भाव, बोल-चाल, सभी आदतें बदल जाएं, उसका स्वभाव कठोर हो जाए, हर कार्य अजीबोगरीब ढंग से करें तो समझ लें कि उसकी आयु करीब 1 वर्ष और शेष हैं।

ऐसे जीएंगे तो नहीं रहेगा मौत का डर

जीवन में जितना रस है मौत शब्द उतना ही भयानक। संसार में संभवत: कोई ही ऐसा हो जिसे मौत का डर न सताता हो। दरअसल डर का कारण मौत या उसके आने का तरीका नहीं, बल्कि हमारे जीना का तरीका है। हम संसार में संसार के होकर रह जाते हैं। इससे आगे की कभी नहीं सोचते इस कारण संसार छूटने का भय बना रहता है। संसार को निर्लिप्त भाव से भोगिए फिर मृत्यु से भय नहीं होगा।
जीवन में एक अज्ञात भय ऐसा है जो ज्ञात भी है, परन्तु है सबसे बड़ा और वह है मृत्यु का भय। उम्र, मौत और जिन्दगी इन तीनों के मामले में संसारी और साधु का फर्क पकड़ें तो भयमुक्त हुआ जा सकता है। संत कितना जिए यह महत्वपूर्ण नहीं होता, कैसे जिए यह उपयोगी होता है। देह त्यागने के पूर्व बुद्ध ने जो अंतिम वाक्य कहे थे उसे समझा जाए। च्च्हंद दानि भिक्खवे आमंत यामि वो, वह धम्मा संरवारा अप्पमादीन संपादे था इतिज्‍ज हर वस्तु नाशवान है, जीवन का संपादन अप्रमाद के साथ करो। आलस्य के साथ वासना का समावेश हो जाए तो प्रमाद शुरू होता है। बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को अपनी अंतिम क्रिया के लिए भी विस्तार से समझा दिया था। मौत को उन्होंने उत्सव बनाया।
भौतिकता की आंधी में आज तो हम इतने भयभीत हैं कि सांप को तो मार देते हैं और रस्सी से डसा जाते हैं। हमारी मौत अवसाद और संतों की मृत्यु उपदेश हो जाती है। इसे दिव्य बनाने का प्रयास उम्र के हर पल में और जिन्दगी के हर पड़ाव पर सतत करना होगा। कहते हैं जब बुद्ध संसार से गए तो उनकी उम्र अस्सी वर्ष थी लेकिन संत समाज मानता है वे चालीस साल के थे क्योंकि जब वे चालीस वर्ष के थे तब एक पीपल के वृक्ष के नीचे सात दिन सतत समाधि में रहे और तब ही उन्हें पूर्णिमा के दिन बुद्धत्व प्राप्त हुआ था। इस ज्ञान प्राप्ति को संबोधि कहा गया है और उसके बाद वे चालीस वर्ष और जीवित रहे। अध्यात्म कहता है उम्र तो उसी को मानेंगे जब, जिन क्षणों में आप स्वयं को जान गए। इसलिए याद रखा जाए कितना जिए यह संसार का समीकरण है कैसा जिए यह अध्यात्म का गणित है।

मृत्यु का मतलब मुक्त हो जाना

मृत्यु एक अटल सच... जीवनभर का एक डर... मृत्यु एक खौफनाक शब्द... मृत्यु जीवन का अंत...। मृत्यु एक ऐसा खौफनाक रहस्य है जो हर जीवित व्यक्ति के पसीने छुड़ा देता है। किसी जीवित प्राणी के जीवन का अन्त ही मृत्यु है। कोई नहीं है जो मरना चाहता है। सभी हमेशा जीना चाहते है, सभी को लंबा और सुखी जीवन जीना हैं। वैदिक काल से ही मानव और दैत्यों द्वारा मृत्यु को जीतने के लिए घोर तपस्या कर भगवान से अमरता पाने की चेष्टा की जा रही है। परंतु मानव के लिए ऐसा आज तक संभव नहीं हो सका है। जिसने जन्म लिया है उसे तो मृत्यु को प्राप्त होना ही है। बस फर्क सिर्फ इतना है कोई दीर्घायु है और कोई अल्पायु। इसी वजह से हर व्यक्ति के मन कई बार मृत्यु को लेकर कई प्रश्र उठते हैं।प्राचीन काल की ही तरह आज भी विज्ञान मृत्यु को जीतने के लिए तरह-तरह के प्रयोग कर रहा है। परंतु हमारा आधुनिक विज्ञान भी मृत्यु को जीतने के संबंध में आज तक कोई सफलता हासिल नहीं कर पाया है। यहां सिर्फ दो ही सच है जन्म और मृत्यु। जो जन्मा है वह मृत्यु को प्राप्त होगा और जो मृत्यु को प्राप्त हुआ है वह पुन: जन्म अवश्य लेगा। भगवान ने इन्हीं दो अवस्थाओं को अपने पास रखा है और बाकि सभी सुख-सुविधाएं मानव को प्राप्त है।मृत्यु का अर्थ है मुक्त हो जाना... परम शांति को प्राप्त हो जाना... सारे मोह छोड़ देना...। मृत्यु हमें त्याग सिखाती है कि मुक्त हो जाओ सारे मोह से, आप अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकते..।भगवान श्रीकृष्ण ने मृत्यु के संबंध में जो कुछ कहा है वह सर्वविदित है कि मृत्यु सिर्फ हमारे शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। आत्मा तो अजर, अमर है। आत्मा कभी नहीं मरती, वह सिर्फ वस्त्रों की तरह शरीर बदलती है। मृत्यु हमारी जीवन रूपी परीक्षा का परिणाम है। अत: हम परिणाम अच्छा चाहते हैं तो हमें कर्म भी धर्म के मार्ग पर चलते हुए करने होंगे। तभी हमारा अंत भी सुख देने वाला होगा।

कैसे और कहां से निकलती है जान?

मौत कड़वा किन्तु अटल सत्य। दुनिया में शायद ही कोई हो जो मरना चाहता हो, जबकि सब अच्छी तरह जानते हैं कि इससे आज तक कोई भी बच नहीं सका। मौत होती है यह तो सभी जानते हैं किन्तु, कैसे और क्या हेाती है मौत? आज तक यह नहीं सुना गया कि कोई हंसते हुए मरा हो। इसीलिये यह कहना ज्यादा उचित है कि रोते हुए आते हैं सब और मौन होकर चले जाते हैं। कुछ कालजयी लोग इस दुनिया में ऐसे होते रहे हैं जो जन्म-मृत्यु के पार देखने में समर्थ होते हैं। ऐसे ही सिद्ध लोगों में शामिल योगीराज अरविंद मौत के विषय बड़ी ही रौचक बातें बताते हुए कहते हैं कि-बेंहोसी में.... बीमारी, आघात या अन्य जिस भी कारण से मृत्यु हो रही हो तो उससे भी कष्ट यानि तकलीफ अवश्य होती है। मरने से पहले हर प्राणी को अपार कष्ट होता है किन्तु उस अवस्था में वह कुछ बोल नहीं पाता। जब प्राण या जान या आत्मा निकलने का समय बिल्कुल नजदीक आ जाता है तो प्राणी एक प्रकार की बेहोंशी में चला जाता है और इस अचेत अवस्था में ही आत्मा शरीर से बाहर निकल जाती है।आम रास्ता: अधिकांशत: शरीर के ऊपर के हिस्सों या अंगों से ही प्राण या आत्मा निकलती है। मुख, आंख, कान या नाक ही आत्मा के निकलने के प्रमुख मार्ग हैं।पापियों की जान: दुष्ट, पापी एवं दुराचारी (बुरे कर्म करने वाले)लोगों की आत्मा मल-मूत्र के रास्ते से निकलता देखा गया है। योगी की आत्मा: जबकि योग की उच्च अवस्था में पहुंचे हुए सिद्ध योगी ब्रह्मरंध्र से प्राणों का त्याग करेंगे।