Monday, July 12, 2010

मृत्यु का मतलब मुक्त हो जाना

मृत्यु एक अटल सच... जीवनभर का एक डर... मृत्यु एक खौफनाक शब्द... मृत्यु जीवन का अंत...। मृत्यु एक ऐसा खौफनाक रहस्य है जो हर जीवित व्यक्ति के पसीने छुड़ा देता है। किसी जीवित प्राणी के जीवन का अन्त ही मृत्यु है। कोई नहीं है जो मरना चाहता है। सभी हमेशा जीना चाहते है, सभी को लंबा और सुखी जीवन जीना हैं। वैदिक काल से ही मानव और दैत्यों द्वारा मृत्यु को जीतने के लिए घोर तपस्या कर भगवान से अमरता पाने की चेष्टा की जा रही है। परंतु मानव के लिए ऐसा आज तक संभव नहीं हो सका है। जिसने जन्म लिया है उसे तो मृत्यु को प्राप्त होना ही है। बस फर्क सिर्फ इतना है कोई दीर्घायु है और कोई अल्पायु। इसी वजह से हर व्यक्ति के मन कई बार मृत्यु को लेकर कई प्रश्र उठते हैं।प्राचीन काल की ही तरह आज भी विज्ञान मृत्यु को जीतने के लिए तरह-तरह के प्रयोग कर रहा है। परंतु हमारा आधुनिक विज्ञान भी मृत्यु को जीतने के संबंध में आज तक कोई सफलता हासिल नहीं कर पाया है। यहां सिर्फ दो ही सच है जन्म और मृत्यु। जो जन्मा है वह मृत्यु को प्राप्त होगा और जो मृत्यु को प्राप्त हुआ है वह पुन: जन्म अवश्य लेगा। भगवान ने इन्हीं दो अवस्थाओं को अपने पास रखा है और बाकि सभी सुख-सुविधाएं मानव को प्राप्त है।मृत्यु का अर्थ है मुक्त हो जाना... परम शांति को प्राप्त हो जाना... सारे मोह छोड़ देना...। मृत्यु हमें त्याग सिखाती है कि मुक्त हो जाओ सारे मोह से, आप अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकते..।भगवान श्रीकृष्ण ने मृत्यु के संबंध में जो कुछ कहा है वह सर्वविदित है कि मृत्यु सिर्फ हमारे शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। आत्मा तो अजर, अमर है। आत्मा कभी नहीं मरती, वह सिर्फ वस्त्रों की तरह शरीर बदलती है। मृत्यु हमारी जीवन रूपी परीक्षा का परिणाम है। अत: हम परिणाम अच्छा चाहते हैं तो हमें कर्म भी धर्म के मार्ग पर चलते हुए करने होंगे। तभी हमारा अंत भी सुख देने वाला होगा।

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