Monday, July 12, 2010

धन आए तो मन को जरूर संभाल लें

आजकल धन कमाना आसान है लेकिन उसका सही निवेश मुश्किल। अधिकतर लोगों के साथ होता यह है कि वे धन तो खुब कमा लेते हैं लेकिन उसका सही विनियोजन नहीं कर पाते, नतीजतन वे फिर से धन खो देते हैं। जब धन आए तो अपने मन-बुद्धि को जागृत कर लें। अन्यथा सारा पुरुषार्थ निष्फल रह जाएगा। धन कमाने में जितनी अक्ल लगती है उससे ज्यादा इसके निवेश और बचत में बुद्धि लगाना पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि धन के व्यावहारिक पक्ष पर तो आजकल सभी समझदार हो गए हैं। इस समय तो ऐसा माना जाता है कि इस दौर में तो बच्च पैदा होते समय ही धन-दौलत के मामले में सिखा-सिखाया आता है। लेकिन यदि धन का आध्यात्मिक पक्ष नहीं समझा गया तो ये धन सुख से अधिक दुख का कारण बन जाता है। अमीरी और दौलत अपने साथ प्रदर्शन और दिखावे की आदत लेकर आती है। यहीं से जीवन में आलस्य और अपव्यय का आरंभ भी हो जाता है। र्दुव्‍यसन दूर खड़े होकर इन दोनों बातों की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं कि कब आदमी आलस्य, अपव्यय के गहने पहने और हम प्रवेश कर जाएं।जब जीवन में बाहर से धन आ रहा हो तो समय रहते हम भीतर के धन की पहचान कर लें। जब हम धन के बाहरी इन्तजाम जुटा रहे हों उसी समय मन की भीतरी व्यवस्थाओं के प्रति सजग हो जाएं। मन की चार अवस्था मानी गई है। स्वप्न, सुषुप्ति, जागृत और तुरीय। इनमें तुरीय अवस्था यानी हमारे भीतर किसी साक्षी का उपस्थित होना। हम हैं इसका होश रहना। बहुत गहरे में हम पाते हैं कि चाहे हम सो रहे हों या जागते हुए कोई काम कर रहे हैं, हमारे भीतर कोई होता है जो इन स्थितियों से अलग होकर हमें देख रहा होता है। थोड़ा होश और अभ्यास से देखें तो हमें पता लग जाता है कि यह साक्षी हम ही हैं। इसे ही हमारा होना कहते हैं। धन के मामले में जितने हम तुरीय अवस्था के निकट हैं उतने ही प्रदर्शन, अपव्यय, आलस्य, दुगरुणों से दूर रह पाएंगे। यह धन का निजी प्रबंधन है तथा तब दौलत आपको सुख के साथ शान्ति भी देगी।

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