Monday, July 12, 2010

पैसा नीति से कमाएं, रीति से खर्च करें

कहते हैं जिस नीति से धन कमाया जाता है उस धन की गति भी वैसी ही होती है। अनैतिक कार्यो से कमाया गया धन हमेशा पीड़ा देता है, मानसिक त्रास देता है और अंत में वह भी ऐसे कामों में खर्च होता है, जो अनावश्यक होते हैं। धन अच्छे कर्मो से कमाया जाए और सही जगह निवेश किया जाए तो ही वह फल देता है। इसी में लक्ष्मी का वास भी माना गया है। आज पुरुषार्थ का 90 प्रतिशत भाग धन कमाने में लग गया है। सारे प्रयास धन के पीछे हैं। आदमी को धनवान भी होना है और भगवान भी मिलना है। दोनों की चाहत समानांतर चलती है। पैसा और परमात्मा एक साथ मिले इस मणिकांचन योग के लिए पूरी जिंदगी कई लोगों ने दांव पर लगा दी। शास्त्र कहते हैं न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं। वह जैसा चाहती है वैसा नचाती है। वेदव्यास में लक्ष्मी के सात साधन बताए हैं-धर्य धारण करना, क्रोध न करना, इन्द्रियों को वश में रखना, पवित्रता, दया, सरल वचन और मित्रों से द्वेष न रखना।कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि धन न कमाया जाए। भगवान को हमारी निर्धनता से अधिक हमारी वैराग्य वृत्ति प्रिय है। बड़े से बड़ा धनवान बैरागी हो सकता है और गरीब से गरीब के भीतर भी इस वृत्ति का अभाव हो सकता है। अत: धन कमाना बुरा नहीं है, आप किस तरह से कमा रहे हैं और धन अर्जन के कृत्य को किस प्रकार पूरा कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है। परिणाम उसी में छिपा है। धन दुख नहीं देता और न ही सुख बरसाता है। उसके तरीके का सारा खेल है। जैन धर्म में महावीर स्वामी ने एक सूत्र कहा है- कर्म, कर्ता का ही अनुगमन करते हैं। जो व्यक्ति जिस तरह से धन कमा रहा है, परिणाम उसे ही भुगतना है। उस धन से जो दूसरे लाभ ले रहे हैं उन्हें उसका परिणाम वैसा नहीं भुगतना होगा। महावीर का सूत्र है-न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ, न मित्त वग्गा न सुया न बंधवा। एक्को सयं पच्चणु होई दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं।। जाति, मित्र, संतानें इस दुख का विभाजन नहीं कर सकते। ऐसा दुख अकेले ही भुगतना पड़ता है। इसलिए नीति से कमाएं और रीति से खर्च करें। क्योंकि जिम्मेदारी आपकी अकेले की होगी।

No comments:

Post a Comment