Saturday, November 13, 2010

मैं पहुँचकर शिखर पर अकेला पड़ गया हूँ माँ

वो प्यार भरी थपकी वो माथे पे चुम्बन तेरा
ऐ माँ अभी तेरी परछाईं मेरी आँखों में बाक़ी है।

वो हर रात सुनाना एक मीठी सी लोरी
उसकी मिठास अब भी मेरी सांसों में बाक़ी है।

वो तेरे होंठों की लम्स तेरे सांसों की खुशबू
ये एह्सास अब भी मेरी यादों में बाक़ी है।

मैं पहुँचकर शिखर पर अकेला पड़ गया हूँ
पर तेरी दुआओं का असर मेरी राहों में बाक़ी है।


ऐ “राज” अब दर्द पाकर मुझे एहसास होता है
तेरी ममता का वो दर्द मेरी आहों में बाक़ी है।


1 comment:

  1. माँ के आशीर्वाद से बढ़कर और क्या है?

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